Tuesday, August 15, 2017

गोरखपुर हादसे ने योगी की नीयत को एक्सपोज़ किया है ?

तो बच्चो की मौत ऑक्सीजन की कमी से नहीं हुई ये ऐलान यूपी के सर्वे सर्वागोरखनाथ मठ के महंत और यूपी के सीएम मंहत योगी आदित्यनाथ ने कर दिया...ऐसे में फिर एक योगी की बात को समाज जस का तस स्वीकार करेगा या खारिज कर देगा ये बड़ा सवाल है ... महज चंद घंटो में 36 बच्चों की मौत हुई लेकिन राज्य सरकार से लेकर केंद्र सरकार ने इस बात को खारिज कर दिया वो अलग बात है कि आरोपों के  खारिज होने के बाद भी सरकार जांच की दरियादिली दिखा रही है लेकिन सवाल है कि जब मौते समान्य है तो फिर जांच किस बात का करवाएगी. वैसे भी स्वास्थ्य मंत्री सिद्धार्थनाथ सिंह ने तो साफ साफ कह ही दिया है कि अगस्त में बच्चो की मौत तो होती ही है... 10 अगस्त को अस्पताल में ऑक्सीजन प्लांट चलाने वाले कर्मचारियों ने सीएमओ को लिखा कि आक्सीजन का स्टॉक खतरनाक रूप से कम हो चुका है और रात तक के लिए भी नहीं बचा है. ऑपरेटर ने अस्पताल प्रशासन से गुहार लगाई कि जल्दी कीजिए मरीज़ों की ज़िंदगी ख़तरे में है. यह दूसरा पत्र था. एक हफ्ता पहले भी ऐसा ही पत्र लिखा जा चुका था जिसका कोई जवाब उन्हें नहीं मिला.  जिस अस्पताल का दौरा राज्य के मुख्यमंत्री एक महीने में दो बार करते होंमेडिकल शिक्षा सचिव एक महीने में दो बार जाती होंस्वास्थ्य सचिव भी दौरा करते होंवहां ये घटना क्यों हुई जबकि ऑक्सीजन सप्लाई करने वाली कंपनी ने कानूनी नोटिस भी भेजा था. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जुलाई को भी आए थे और अगस्त को भी. इसके बाद भी इस अस्पताल की अनेक समस्याएं दूर नहीं हुईं. कुछ वार्ड की हालत ऐसी है कि जानकर लगेगा कि ये अस्पताल चल कैसे रहा था. और सारे प्रमुख व्यक्तियों के दौरे के बाद भी वो कौन सी शक्ति थी जो इसमें सुधार नहीं होने दे रही थी.एंसेफलाइटिस के उपचार के लिए फिजिकल मेडिसिन एंड रिहैब विभाग के सभी कर्मचारियों को 28 महीने से वेतन नहीं मिला है. आज की तारीख तक किसी को वेतन नहीं मिला है. वेतन न मिलने के कारण डॉक्टर छोड़ कर चले गए. इस बाबत गोरखपुर न्यूज़लाइन के मनोज सिंह ने दि वायर के लिए एक ख़बर भी छापी थी.इस विभाग में अब कोई डॉक्टर नहीं है, 11 थेरेपिस्ट बचे हैं जिन्हें वेतन का इंतज़ार है.एक और वार्ड है जिसके स्टाफ को पांच महीने की देरी के बाद घटना से दो दिन पहले वेतन मिला था. इसी अस्पताल के नियो नेटल विभाग के छह महीने से सैलरी नहीं मिली है. इन्हें भी हाल में सैलरी मिली है. दरअसल सरकारी अस्पतालों की एक ऐसी छवि गढ़ दी जाएगीजहां कि वे सबसे बेकारलापरवाह और उनमें जाना यानी मौतों को दावत देना. निजीकरण को समाज में थोप देने का इससे सस्ता और आसान रास्ता कोई और है भी नहींजिसके दम पर निजी स्वास्थ्य और शिक्षा सरीखी सेवाएं बेहद आसानी से अपना लक्ष्य हासिल कर रही हैं. अब जरा आप यूपी का स्वास्थ्य बजट देख लिजिए.... जब योगी जी आप यूपी सरकार का बजट पेश कर रहे थे तब आपने हेल्थ के बजट को लेकर जरा भी गंभीरता नहीं दिखाई. आप 2017-2018 के सिर्फ13692 करोड़ रुपए प्रस्तावित किए. जो कि पिछले बजट से भी कम हैं. यह बजट भी यह कहकर दिया कि 108 नंबर वाली 712इमरजेंसी एंबुलेंस खरीदेंगे. क्या आप भूल गए कि आपके प्रदेश की स्वास्थ्य व्यवस्था कितनी लचर है. बीते दशकों में बच्चों के लिए काल बन रही इंसेफेलाइटिस से 18 हजार से ज्यादा मौतें हो चुकी हैं. मगर पिछले 34 सालों मे अकेले आपके शहर गोरखपुर मे 25 हज़ार से ज़्यादा मासूम मौते हुई लेकिन कार्रवाई के नाम पर क्या हुआ..2014 में मोदी सरकार के आने के बाद भी पूर्वांचल की इस त्रासदी को रोकने के लिए कोई बड़ा कदम नहीं उठाया गया. शुक्रवार को जब अचानक बीआरडी कॉलेज में ऑक्सीजन की कमी के चलते एक साथ 30 बच्चों की मौत की खबर आई और उसमें योगी सरकार को घिरता देखा तो आनन-फानन में केन्द्र सरकार हरकत में आई. केन्द्र सरकार ने घोषणा की है कि गोरखपुर में मेडिकल रिसर्च सेंटर स्थापित करवाएगा. यह सेंटर बच्चों की बीमारियों पर रिसर्च करेगा और उन बीमारियों से लड़ने के लिए टीकों को विकसित करेगा. अपने गोरखपुर दौरे के वक्त केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री जे. पी. नड्डा ने रविवार को इस बात की घोषणा की. उन्होंने कहा कि रिसर्च सेंटर बनाने के लिए केन्द्र सरकार 85 करोड़ रुपए खर्च करेगी. यहां आप ये भी जान लिजिए कि मोदी सरकार ने 2016 में 750 बेड वाले एम्स अस्पताल के निर्माण को मंजूरी दी थी और साथ ही साथ जुलाई 2016 में पीएम नरेंद्र मोदी ने खुद उसकी नींव रखी थी. लेकिन एम्स 2019 से पहले बनने की हालात में नहीं है. ऐसे में बीआरडी मेडिकल कॉलेज ही है जो पूर्वी उत्तर प्रदेशपश्चिमी बिहार और नेपाल के तराई इलाकों के तकरीबन 10 करोड़ लोगों को सस्ती स्वास्थ्य सुविधा मुहैया करवा रहा है. लेकिन ये सस्ती स्वास्थ्य सेवा के पीछे की सच्चाई से तो आपका सामना हो ही गया है... सीएजी ने 2011 से 2016 तक राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन का हिसाब किताब किया है. गांवों कस्बों में स्वास्थ्य की हालत के लिए यह योजना बहुत महत्वपूर्ण है. सीएजी ने कहा है कि 27 राज्यों ने इस योजना के मद में दिए गए पैसे खर्च ही नहीं किए. 2011-12 में यह रकम 7,375 करोड़ थी. 2015-16 में 9509 करोड़ थी. ये वो राशि है जो ख़र्च नहीं हो सकी. सीएजी ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि हमारे देश में सैकड़ों ऐसे स्वास्थ्य केंद्र हैं जो बहुत ही गंदे हालात में काम कर रहे हैं. 20 राज्यों में 1285 प्रोजेक्ट कागज़ों पर ही पूरे हुए हैंमगर असलियत में शुरू भी नहीं हुए हैं. क्या आपने सुना है कि इन 1285 प्रोजेक्ट से जुड़े लोगों के खिलाफ कार्रवाई हुई है.  वार्षिक परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के मुताबिक जो जन्म लेने के सात दिन के अंदर जिंदा नहीं रह पाते जिसे हम तकनीकी भाषा में नवजात शिशु मृत्यु दर कहते हैं इसमें शीर्ष 100 जिलों में 46 उत्तप्रदेश के खाते में आते हैं. हमने उनसे बड़े बच्चों यानी शिशु मृत्यु दर (जो बच्चे जो अपना पहला जन्मदिन ही नहीं मना पाते) पर नजर डाली तो उसमें भी शीर्ष 100 जिलों में सबसे ज्यादा जिले उत्तरप्रदेश के हैं. और जब हमने उससे भी बड़े यानी पांच साल तक के बच्चों अर्थात बाल मृत्यु दर को देखा तो उसमें भी उत्तरप्रदेश ही आगे खड़ा हुआ है. इन परिस्थितियों से गुजरते हुए आप इस बात को समझ गए होंगे की देश कहा खड़ा है ... मेरा सवाल फिर गोरखपुर पर ही आकर रुकता है कि क्या सरकार को जितनी संजीदगी इस मामले में दिखानी थी क्या सरकार ने दिखाई या फिर महज राजनीति के इर्द गिर्द गंभीर बयान देकर आपना पिंड छुड़वा लिया...अब तो सरकारों के खिलाफ बोलने से पहले सोचना भी होगा क्यों देश में जनता से ज्यादा लोग राजनीतिक समर्थक हो गए है और तो और सरकारें देश हो गई है, सरकार की आलोचना देश की आलोचना के समान है.