जिस एजेंसी के पिछले दो डॉयरेक्टर खुद
कानून के उलंघन के दायरे में आ गए हो और तो और जिस एजेंसी को तोता कह दिया गया हो उस
एजेंसी से ये कैसे उम्मीद की जा सकती है कि वो पूरी निष्ठा और निष्पक्षता के साथ
काम कर रही होगी.जाहिर है लालू यादव को निचली आदालत ने चारा घोटाले में साजिशकर्ता
मानते हुए सजा सुनाई और उन्हे जेल भी जाना पड़ा.लालू कोई छोटे मोटे नेता है नहीं
लालू का अपना एक औरा है जिसके सामने तो कई बार भारतीय राजनीति बौनी पड़ती दिखाई दे
चुकी है. बात आडवानी के रथ रोकने की हो या फिर महागठबंधन के अचूक फॉर्मूले की. जब
पूरे देश में मोदी नाम की लहर थी उसवक्त बिहार में मोदी को मुंह की खानी पड़ी तो
जाहिर है की राजनीतिक तल्खियां बढ़नी थी. मौजूदा हाल में देखा जाए तो लालू पर उसी
तोते ने ये आऱोप लगाया है कि साल 2006 में लालू ने irctc के टेंडर में घालमेल किया औऱ जिन लोगों को
टेंडर मिला उनसे बदले में जमीन ले ली गई.
2004 से शुरू
होती है कहानी !
आईआरसीटीसी के
गठन के बाद साल 2004 में ये तय किया गया कि रांची और पुरी स्थित रेलवे के होटल
बीएनआर का संचालन भारतीय रेलवे से लेकर आईआरसीटीसी को दे दिया जाएगा. इसके ठीक बाद
ही लालू प्रसाद यादव ने रेल मंत्री के तौर पर पदभार संभाला. सीबीआई के अनुसार उनकी
नजर इस फैसले पर पड़ी और वे ‘साजिश’ में लग गए.
साजिश में शुरू
से शामिल थे आरोपी !
सीबीआई के अनुसार
इस साजिश में सभी आरोपी शुरू से ही शामिल थे. इसमें सुजाता होटल्स के मलिक हर्ष
कोचर व विनय कोचर, लालू के करीबी पीसी गुप्ता की पत्नी सरला
गुप्ता और आईआरसीटीसी के अधिकारी की मुख्य भूमिका रही. साजिश के तहत होटलों पर
अधिकार पाने के लिए पूरी योजना बनाई गई और एक साथ ही कई काम हुए.
डेढ़ करोड़ के
सौदे के साथ हुई शुरूआत
इसी साजिश के तहत
कोचर बंधुओं ने फरवरी, 2005 में पटना
में तीन एकड़ की प्राइम लैंड का सौदा एक करोड़ 47 लाख में तय किया. जमीन को डिलाइट
मार्केटिंग कंपनी को बेच दिया गया. इस कंपनी का मालिकाना हक प्रेम चंद गुप्ता की
पत्नी सरला गुप्ता के पास था. दावा है कि यह लालू यादव की ही बेनामी कंपनी थी. दूसरी तरफ आरोप
ये भी है कि लालू को जमीन मार्केट के भाव से बेहद कम दाम पर सौदा हुआ. लेकिन असल
सवाल तो ये है कि आप हम या कोई भी घर जमीन खरीदता है तो रजिस्ट्री सर्किल रेट से
करता है और लेन देन मार्केट के भाव से किया जाता है तो फिर ऐसे में हर नागरिक जमीन
या मकान खरीदता और बेचता है वो चोर है, भ्रष्टाचारी है. इतना ही नहीं सीबीआई ने इस
केस में बिहार के डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव को भी साजिशकर्ता माना है जो उस वक्त नाबालिग
थे. वहीं राबडी देवी को भी इस FIR में लपेट दिया गया जबकि वो पूर्व मुख्यमंत्री है
और लालू यादव की पत्नी भी. जमीन का सौदा साल 2004 में हुआ और टेंडर 2006 में तो जाहिर
है ‘तोता’ एक साजिश के तहत
काम कर रहा है . क्योंकि सीबीआई के पास 6562 केस लंबित है , जिसमें व्यापम जैसा
व्यापक घोटाला शामिल है, इस घोटाले में 2400 लोग आरोपी है, 1900 लोग जेल में है
जबकि 49 लोगों की संदिग्ध परिस्थिति में मौत हो चुकी है बावजूद इन सबके तोता कुछ
ठोस नहीं निकाल पा रहा है. न सीएम से सवाल है न सीएम के पास कोई जवाब, जबकि राज्य
के स्तर पर इतने बड़े घोटाले को अंजाम दिया गया और सीएम को कानों कान खबर नहीं हुई
ये सोचने वाली बात है .वहीं मध्यप्रदेश से आगे बढ़िए और चलिए छत्तीसगढ़. वहां भी
बीते 15 साल से बीजेपी की सरकार है लेकिन 36000 करोड़ के चावल घोटाले में कोई ठोस
कार्रवाई नहीं हुई है, नाही राज्य सरकार ने जांच सीबीआई को सौंपा है तो फिर जिस
बीजेपी की सरकार को लालू पर हुई कार्रवाई सहीं लग रही है उसके नजर में छत्तीसगढ़
का चावल घोटाला क्यों कोई जगह नहीं बना पा रहा है ये तो अपने आप में सवाल है . देश
के ज्यादातर राज्यों में बीजेपी की सरकार बन चली है ऐसे में विपक्ष बीजेपी को
पटखनी देने के लिए नए नए रास्ते तलाश रहा है. इसी कड़ी में लालू के फोर्मूले ने
बीजेपी को नए सिरे से सोचने पर मजबूर कर दिया है .लालू ने बिहार में महागठबंधन तो
बना ही रखा है साथ ही उनकी कोशिश है कि यूपी में मायावती और अखिलेश साथ मिलकर
चुनाव लड़े . राज्यसभा न पहुंचने के काबिल रहीं मायावती को लालू ने बिहार से राज्यसभा
भेजने का फैसला लिया है और इसी शर्त के साथ की वो यूपी में अखिलेश के साथ 2019 के
चुनाव में गठबंधन करेंगी. जाहिर है अगर ऐसा हुआ तो फिर 54 प्रतिशत वोट बैंक इस
वोटबैंक के पास चला जाएगा और बीजेपी के हिस्से में 28 से 30 प्रतिशत वोट मिलेंगे.
मतलब बिहार के फोर्मूले से बीजेपी को यहां भी मात दिया जा सकता है बिहार की 40
लोकसभा की सीट और यूपी की 80 लोकसभा की सीटों पर अगर बीजेपी का गणित गड़बडा जाता
है तो फिर मोदी दोबारा पीएम बनेंगे या नहीं ये कहा नहीं जा सकता. इसलिए ये माना जा
सकता है बीजेपी अपने नए नीति के तहत लालू को टारगेट कर रही है क्योंकि जिस नेता या पार्टी पर भ्रष्टाचार के
दाग लगेंगे उसके साथ कोई खड़ा नहीं होना चाहेगा और अगर ऐसा होता है तो फिर विपक्ष
का बिखरना और बीजेपी की जीत लगभग तय है. ऐसे हालत के बीच सरकारी तोते पर सवाल तो
होना ही चाहिए की देश में लालू के केस के अलावा और भी कई बड़े केस है लेकिन उसकी
दिलचस्पी उस केस में क्यों है जिसमें साक्ष्य अब भी साफ नहीं है औऱ घोटाले की रकम
ज्यादा से ज्यादा 80 से 100 करोड़ के बीच की है. सीबीआई के मौजूदा एक्टिंग डॉयरेक्टर
गुजरात से है और लालू के पुराने विरोधी है तो फिर साजिश की बू तो आनी तय है.. इसलिए
ये सवाल लाजमी है कि क्या मोदी सरकार लालू को देश के सामने एक भ्रष्टाचार के सैंपल
के तौर पर पेश कर 2019 की बिसात को बिछा रही है.