Friday, June 16, 2017

मोदी जी! कतरास और मेरी पहचान मिटाने का दोषी कौन ?

देश की सत्ता जहाँ से चलती है वहाँ से 1280 किलोमीटर दूर मेरी एक पहचान मिट गई । अब मैं उसके बारे में सिर्फ यादों के हिसाब से बात कर पाऊंगा । कभी वहाँ जाकर उसका प्रत्यक्षदर्शी नही बन पाऊंगा । पीएमओ और रेल विभाग ने झारखंड के जिला धनबाद के अंतर्गत आने वाले कतरास गढ़ और चंद्रपुरा रेल लाइन को बंद कर दिया है । तकरीबन 32 किलोमीटर की रेल लाइन बन्द हो गयी ।  सरकार कह रही है कि रेल की पटरियों के नीचे आग का दरिया बह रहा है जो कभी भी ट्रेन में सफर करने वाले हज़ारों लोगो को अपने अंदर ले सकता है । तो जाहिर है कि सरकार ने जनहित में ये फैसला ले लिया । आप लोग मेरे यादों से बहुत दूर है तो सबसे पहले आपका और मेरी यादों का परिचय होना जरूरी है । मैं वही कतरास और चंद्रपुरा के बीच रहता था । मंडल केंदुआडीह के पास एक रेलवे हाल्ट है बुदौढा । हम ,पापा और मेरे बड़े भाई अक्सर शनिवार को यहाँ से ट्रेन पकड़ के कतरास जाया करते थे और ये लगभग हर हफ्ते होता था । पापा घर के लिए समान खरीदने जाते और हम और भैया मीठा खोआ वाला समोसा खाने । कतरास हमारे इलाके का आज भी सबसे बड़ा बाजार है धनबाद और झरिया के बाद । कतरास का दुर्गा पूजा तो आस पास के जिलों तक प्रचलित है । दुर्गा पूजा में यहाँ मेला घूमने करोड़ों लोग आते है । भीड़ इतनी की पैर नही रख सकते । हम भी जाते थे । पाप लेकर जाते थे उसी बुदौढा स्टेशन से कतरास तक । कतरास में मेला लगता था,मौत का कुआं,ब्रेक डांस,तारा माची । ट्रेन में इतनी भीड़ होती थी कि एक रुपया का सिक्का भी नही रखा जा सकता था लेकिन पापा मुझे कंधे पर बिठा लेते थे ,फिर हम मेला घूमते,खिलौना खरीदते और घर लौटते वक्त माँ और दीदी के लिए ढेर सारी मिठाई लेकिन वो मिठाई भी हम ही खाते थे घर पर ।ऐसा बरसों तक होता रहा जब तक हम वहां रहे । आज भी जब जाता हूं तो मेरी पहली कोशिश होती है कि कतरास उतरु । खैर अब ये सब महज याद है क्योंकि अब ये रेल लाइन बन्द हो गया । आखिर ये रेल लाइन बन्द क्यों हुई ये भी जान लीजिए । धनबाद का पूरा इलाका कोयले से भरा हुआ है । ये कोयले की कटाई 100 साल से अधिक वक़्त से हो रही है । कोयला  निकाल कर उस जहग पर बालू भरने का रिवाज है लेकिन भ्रष्ट तंत्र,नेता,ठेकेदारों ने इसमें खेल किया और कागजों पर  बालू भराई को दिखाया ,नतीजा ये हुआ कि पैसे कमाने के खेल में ये काम कई सालों तक किया गया और जमीन के अंदर आग लग गई । ऊपर से धनबाद का कोयला कोकिंग कोल ( कोयला दो तरह का होता है कोकिंग और नॉन कोकिंग कोल, कोकिंग कोल ज्यादा कीमती होता है ) ।  जमीन में आग लगने के बाद भी इसपर किसी ने ध्यान नही दिया और आग बढ़ती गयी , आज के वक़्त में वहा आपको जमीन के अंदर से निकलते धुंए दिन में भी साफ साफ दिखेंगे  । धनबाद से लेकर चंद्रपुरा के बीच कुल 13 रेलवे स्टेशन  प्रभावित हुए है ,इनके आस पास हज़ारो लोगो का घर चलता था,बाजार चलता था सब उजड़ जाएंगे । मुझे आज भी भोला झालमूढ़ी वाला याद है ,ट्रेन में झालमूढ़ी बेचता था और गाना गाता था,चुटकुले सुनता था, आज भोला जैसे सैकड़ों लोग बर्बाद हो गए है ।कोयला मंत्रालय और रेल मंत्रालय इस बात के लिए लड़ रहे है कि पटरियों की शिफ्टिंग का खर्चा कौन देगा ? स्टेशन  बन्द है अब इनमे से कोयला निकाला जाएगा ,आउटसोर्स होगा, मुनाफा होगा, जो विधायक और सांसद, नेता आज लोगों के पक्ष में उतर के तमाशा कर रहे है वही लोग कल कोयला निकालने के लिए ठेका लेंगे, अपना परसेंटेज बांधेंगे, पैसा नही देने पर इनके लड़के धमकी भी देंगे । लेकिन सवाल इससे भी आगे का है कि आग को रोकने के लिए वक़्त पर कदम क्यों नही उठाया गया ? अगर उठाया गया तो आग पर काबू क्यों नही पाया जा सका? कौन से लोग इसपर काम कर रहे थे ? उनके फ़ेल होने की जिम्मेदारी किसकी है ?  ऐसे लोगों पर कार्रवाई हुई या कब होगी ? मौजूदा समय मे इलाके के सांसद,विधायक और राज्य और केंद्र में बीजेपी की सरकार है लेकिन किसी ने इस फैसले को रोकने की जहमत नही उठाई ? इस रूट पर रेल परिचालन की बन्दी की मंजूरी  पीएमओ ने दी है । क्या पीएमओ ने ये नही पूछा कि इन स्टेशन पर निर्भर लोगो की  जिंदगी का क्या होगा ? ये लोग अपना पेट कैसे पालेंगे ? क्या पैसे के खेल में जिंदगी की कोई मायने नही है ?  इलाके के मौजूदा विधायक ढुल्लू महतो, सांसद पीएन सिंह सड़को पर है लेकिन ये लोग साल भर से कहा थे ? अखबारों में बयान छपवाने के अलावा क्या किया है ? ये मसला सिर्फ रेल लाइन का नही लाखों लोगों की जिंदगी का है, कोयला निकासी में हुए व्यापक भ्र्ष्टाचार का है । मैं अपने तमाम साथियों से अपील करता हूँ कि हमे अब लाखों लोगों को भूखे मरने से बचाने के लिए कदम उठाना होगा । ये वक़्त बहुत मुश्किल है , राज्य में विपक्ष के लोग सुस्त है, स्थानीय नेता ढुल्लू महतो से टकराने की हिम्मत नही रखते, सांसद से सवाल पूछने वालों का क्या होगा ये हम जानते है । मीडिया अब भी चरण वंदना में जुटा है लेकिन क्या हम लोगों को मरने के लिए छोड़ दे ? भ्रष्ट तंत्र की साजिशों का भेंट मेरे बचपन का एक अहम हिस्सा चढ़ गया। ये ठीक मेरी यादों को मिटाने जैसा है । ऐसे लाखों लोग है जिनकी यादे और जिंदगी इस रेल  रूट से जुड़ी है तो क्या सत्ता सिर्फ तमाशबीन बनी रहेगी , मुस्कुराती रहेगी, मुनाफा कमाएगी या उजड़ती जिंदगी और यादों को बचाने के लिए कोई उठाएगी,  यही असल सवाल है ।

Friday, June 9, 2017

ये जो देश मेरा महान है ......!

 जय जवान और जय किसान, ये नारा तो हम सब जानते है कि किसने दिया है लेकिन अब ये एक सवाल भी है कि क्या अब भी जय किसान है , अगर है तो जो लोग कह रहे है कि इस देश में अब भी किसान की जय है तो फिर सवाल ये है कि उनपर गोली क्यों चलाई गई, मध्यप्रदेश की घटना पूरे देश में चर्चा का विषय है कि शिवराज सिंह के नेतृत्व वाली बीजेपी की सरकार ने किसानो पर गोली चलवा दी और 5 लोगों की जान चली गई. पहले तो पुलिस और सरकार ने किसी तरह की गोली चलाए जाने के आदेश से इनकार किया लेकिन आईजी ने बाद में माना की पुलिस ने गोली चलाई है . ये देश का दुर्भाग्य है कि जो अन्नदाता इस देश का मतदाता भी है उसके हालत पर कोई गंभीर नहीं है.गंभीरता होती तो आप खुद सोचिए की कैसे जिस राज्य के किसान सड़कों पर है उस राज्य को 3 साल लगातार कृषि रत्न अवार्ड से सम्मानित किया जाता रहा... डॉ. स्वामीनाथन की अध्यक्षता में नवंबर 2004 को 'नेशनल कमीशन ऑन फारमर्स' बना था. दो सालों में इस कमेटी ने 6 रिपोर्ट तैयार की. इन रिपोर्ट्स में तेज और समावेशी विकास की खातिर सुझाव दिए गए थे. फ़सल उत्पादन मूल्य से पचास प्रतिशत ज़्यादा दाम किसानों को मिले. किसानों को अच्छी क्वालिटी के बीज कम दामों में मुहैया कराए जाएं. गांवों में किसानों की मदद के लिए विलेज नॉलेज सेंटर या ज्ञान चौपाल बनाया जाए. महिला किसानों के लिए किसान क्रेडिट कार्ड जारी किए जाएं. किसानों के लिए कृषि जोखिम फंड बनाया जाए, ताकि प्राकृतिक आपदाओं के आने पर किसानों को मदद मिल सके. 28 फीसदी भारतीय परिवार ग़रीब रेखा से नीचे रह रहे हैं. ऐसे लोगों के लिए खाद्य सुरक्षा का इंतज़ाम करने की सिफारिश आयोग ने की लेकिन नतीजा क्या है आप देख सकते है. विभिन्न बैंकों से देशभर के किसान कितना कर्ज लिए, इस पर 30 सितंबर 2016 को अंतिम आंकड़ा जारी किया गया था, जिसके मुताबिक देश के 10 बड़े कर्जदार राज्यों में उत्तर प्रदेश का पहला स्थान है। प्रदेश के 79,08,100 किसान परिवार कर्ज में डूबे हुए हैं। किसान कर्जदार परिवारों में जहां महाराष्ट्र दूसरे स्थान पर है, वहीं राजस्थान तीसरे स्थान पर है। उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने अपनी पहली ही कैबिनेट बैठक में चार अप्रैल को प्रदेश के 86 लाख लघु और सीमांत किसानों को कर्जमाफी का तोहफा दिया था। लेकिन सरकार के इस फैसले के दो महीना पूरा होने के बाद कर्जमाफी की आस लगाए किसानों को निराशा होने लगी है। किसानों को उम्मीद थी कि कर्जमाफी होने पर एक तरफ जहां उन्हें कर्ज से छुटकारा मिलेगा, वहीं उन्होंने कर्ज की जो एक-दो किश्त जमा की हैं, उसका पैसा वापस मिलेगा। कर्जमाफी की जानकारी लेने के लिए प्रदेशभर के किसान संबंधित बैंकों का चक्कर लगा रहे हैं, लेकिन बैंक की तरफ से उनको कोई जानकारी नहीं दी जा रही है। साल 2012-13 के नेशनल सैंपल सर्वे ऑफिस के अनुसार, पंजाब के किसानों की औसत मासिक आमदनी 18,059 रुपये थी. इसके बाद हरियाणा के किसानों का नंबर आता है. उनकी मासिक आमदनी 14, 434 रुपये थी. सबसे कम बिहार के किसानों की मासिक आमदनी थी, 3,588 रुपये. इस सर्वे के मुताबिक , भारत के किसानों की औसत मासिक आमदनी होती है, मात्र 6, 426 रुपये. मध्यप्रदेश में प्रदर्शन कर रहे किसानों की मांग है कि उनके फसलों के  उचित दाम तय किए जाएं, कर्ज माफ हो,मंडी शुल्क वापस हो फसलों के समर्थन मुल्य बढ़ाए जाएं...15 साल से मध्यप्रदेश में बीजेपी की सरकार है....ऐसे में वहां के किसानों के हालात इतने बुरे है तो इसका जिम्मेदार किसे ठहराया जाए, मध्यप्रदेश के मंदसौर जहां किसानो पर गोली चलाई गई वहां के किसानों का कहना है कि कश्मीर में पत्थरबाजी करने वालों पर पैलट गल और रबर बुलेट का इस्तेमाल होता है जबकि देश के किसानों पर पुलिस सीधे गोली चलाती है, ये दोहरा मापदंड नहीं है तो क्या है...मिनीमम सपोर्ट प्राइस पर मोदी सरकार क्यों कुछ नहीं बोल रही है, ये कब तक हो पाएगा , क्या स्वामीनाथन कमेटी की सिफारिशे सिर्फ बाते करने के लिए ही सीमित है या फिर उसे लागू भी किया जाएगा, किसानो का आरोप है कि सरकार के पास ऐसी कोई नीति नहीं है कि वो किसानों के ज्यादा फसल का सहीं दाम दिलवा पाएं या उत्पाद कम होने पर उसकी मदद की जा सकें....तो देश के अन्नदाता के लिए खेतों में मौत की फसल उपज रही  है  ,ये वाकई डरावना है  की पहले जो पार्टी और  उसके समर्थक  किसानो के लेकर बड़ी बड़ी बातें करती थी वो सत्ता में आने के बाद क्यों भूल गए है ? क्यों अब केंद्र कद फैसलों की आलोचना नही होती जबकि असल सवाल तो ये है किसानों को लेकर इस सरकार ने कुछ भी ठोस किया है तो वो कहा है ? शिवराज सिंह चौहान  किसानों के लिए उपवास  करते है  इसका मतलब क्या है ? क्या वो अपनी गलती मानते है ?  अगर उनकी गलती है तो कार्रवाई क्यों नही होनी चाहिए ?   देश के मौजूदा माहौल में ज्यादा सवाल पूछना भी ठीक नही लगता, कब कौन आपकी देशभक्ति को सवालों के घेरे में ले आये ये कौन जानता है ?  आप खुद से पूछिए की जब कांग्रेस के वक़्त आप सवाल करते थे तो क्या आपकी देशभक्ति जांची जाती थी ? बीजेपी विपक्ष में थी तो पॉलिसी पैरालाइसिस का आरोप कांग्रेस पर लगती थी लेकिन मौजूदा बीजेपी सरकार की पॉलिसी क्या है ? विदेश मंत्री, विदेश मंत्रालय  लगातार ये कहता है कि पीएम मोदी पाकिस्तानी पीएम से नही मिलेंगे लेकिन होता ठीक उसके उलट है । 2 दिन में 2 बार मुलाकात होती है । देश मे कहा जाता है कि आतंक और क्रिकेट एक साथ नही चल सकता , पाकिस्तान जब तक आतंकियों को भेजना बन्द नही करेगा तब तक बात नही होगी । तो सवाल ये है कि पीएम ने क्यों मुलाकात की ? भारत सरकार का पाकिस्तान को लेकर स्टैंड क्या है ? आप खुद सोचिए ,क्या ये सवाल आपके मन मे नही उठते ,अगर नही तो क्यों नहीं  और अगर उठते है तो फिर इसका जवाब तलाशिए । कुल मिलाकर मेरी जो समझ है जिससे मुझे तो यही लगता है  मोदी सरकार और मनमोहन सरकार में कुछ ज्यादा अंतर नही है ।।।।