जल ही जीवन है यह बात आप और हम सब बचपन से ही सुनते आ रहे है लेकिन इसके मायने को समझने के लिए हमें अपने सोच को विकसीत करने की जरूरत है। एक वक्त था जब देश के लोग नदी और तलाब की पानी पिया करते थे जिसके बाद कुंए का निर्माण हुआ फिर लोग चापाकल(हैंडपंप)का इस्तमाल करने लगे और आज के वक्त हम नल के पानी से लेकर बोतल बंद पानी का इस्तमाल करने लगे है । इन सब के बीच हम इस बात का ध्यान रखना भूल गये कि हम लगातार विकास के साथ कदमताल करने के ऐवज में अपने इलाके के नदी –तलाबो को ही खत्म कर बैठे । हमने न केवल नदी –तलाबो को खत्म ही नहीं किया बल्कि जल की गुणवक्ता को खराब करने में पूरी भूमिका निभायी । अब हमें ऐसा वक्त भी देखने को मिल रहा है जहां पानी पर अधिकार के लिए लड़ाई तक की जा रही है। हमारे देश में भी जल बटवारे को लेकर कई राज्यो में आपसी तकरार हैं। यही कहानी हमें विश्व के कई अन्य देशों में भी देखने को मिल रही हैं। पानी एक ऐसा आधार है जो किसी ईलाके के बसने और उजडने का मुख्य कारक होता हैं लेकिन हम इंसानी फितरत वाले लोग जो ठहरे, हमने जल संरक्षण के जगह उंची इमारतो और फैक्ट्रीयों को तरजीह दी, शहर और गांव में गिरते जल स्तर को बचाने के जगह बोतल बंद पानी को तरजीह दी । आज के मौजूदा हालत ऐसे हो चले है जहां पानी उपल्बध न होने के कारण लोग अपने पैतृक निवास को छोड़ने पर मजबूर हैं। पानी की मौजूदगी नहीं होने से किसान खेती छोड़ रहे है तो कहीं किसानो की फसलें बर्बाद हो रही हैं। हमारे देश में विदर्भ और बुंदेलखंड जैसे ईलाके से खेती करना मौत को गले से लगाने जैसा माना जाने लगा हैं । हमें जरूरत है कि ऐसी विचारधारा को बदला जाये और खेती छोड़ रहे किसानो को दुबारा मुख्यधारा में लाया जाये ।हम ऐसा तभी कर सकते है जब हम जल संरक्षण को लेकर तेजी से काम करना शुरू कर दे । हमारे देश की सरकार इस तरफ कब सोचेगी यह तो कहना मुशकिल है लेकिन समाज में अपनी जिम्मेदारीये को समझने वाले लोग इस दिशा में दशकों से काम कर रहे है। राजस्थान के राजेन्द्र सिंह भी उन लोगो में से एक है जो जल सरक्षण को अपने जीवन का मकसद मानकर इस दिशा में काम कर रहे हैं। इन्होने जल संरक्षण से राजस्थान की मर चुकी 7 नदीयो को जिदां किया हैं साथ ही 1000 गांवो में दुबारा पानी को पहुंचाया है। इनके काम को देखते है हुए इन्हें कई अंतराष्ट्रीय मंचो पर सम्मानित किया जा चुका हैं। बहरहाल ,हमें जरूरत है कि सरकार ऐसे लोगो को एक मंच प्रदान करे जिससे ये लोग जल संरक्षण की चेतना को लोगो के अंदर जगाये । ये बेहद ही दुर्भाग्यपुर्ण है कि राजेन्द्र सिंह (जल मानव ) जैसे लोगो का ईस्तमाल देश और राज्य की किसी भी सरकार ने नहीं किया । यहा यह कहना भी जायज नही है कि सरकार ने कभी अपने स्तर से जल सरंक्षण के विषय पर गंभीरता से काम किया होगा अगर किया होता तो हमारे सामने खेतो में किसानो की लटकती लाशे नहीं होती। जैसे- जैसे वक्त बीतेगा पानी की समस्या और गहराती चली जायेगी । खतरा इस बात का भी है कि तीसरा विश्व युध्द पानी को लेकर लड़ा जा सकता है ।क्या वाकई हम इतने गैर-जिम्मेदार हो चुके है या फिर हम इतने खुदगर्ज हो गये है कि पानी जैसे गंभीर विषयों पर चर्चा तो दूर कभी अकेले में बैठ कर सोचते तक नहीं है । क्या देश की सरकार केवल और केवल कंक्रिट के जंगल को खड़ा कर हम तक हर सुविधा पहुंचा सकती है ?क्या देश के किसानो और सुखे पड चुके इलाको के प्रति हमारी कोई जिम्मेदारी ही नहीं बची है ? अन्न पैदा करने वाले कब तक अन्न के अभाव में बिना अन्न के प्राण त्यागते रहेंगे ? हमारे विकसीत हो जाने के चाह के बीच यह भी जरूरी है कि हम अपने नींव को जड़ से मजबूत करें और राजेन्द्र सिंह (जल मानव) जैसे लोगो की संख्या समाज में बढ़े इस दिशा में कोशिश करनी चाहिए वरना वह दिन भी दूर नहीं होगा जब हम एक बोतल पानी के बदले एक जान लेने तक के लिए तैयार हो जाये । जल संरक्षण ही ऐसा एक मंत्र है जिससे सुखे इलाको को हरा भरा किया जा सकता है, फसले फिर से लहलहा सकती है और किसानो के घर भी ठहाको की अवाज सुनाई पड़ सकती हैं ।
दिल कि लिखें तो कहां लिखें ...यहां लिखें कि वहां लिखें ..हमारी कलम में अगर हो स्याही किसी और की, तो फिर लिखें तो क्या लिखें।
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