Friday, October 9, 2015

“भड़ास वाला पगला गया है”

भड़ास वाला पगला गया है यह शब्द मेरे नहीं बल्कि एक न्यूज़ चैनल में काम करने वाले मेरे मित्र के हैं। मैंने जैसे ही उनको यह बताया कि भड़ास4 मीडिया वालो ने एक अख
बार के घटिया पत्रकारिता की  पीडित महीला के समर्थन में आकर प्रेस क्लब ऑफ इंडिया में एक आयोजन किया है यह शब्द उनके मुख से निकल पड़े । खैर, भड़ास वालो के अंदर हिम्मत तो है इसमें कोई श़क नहीं हैं। एक अखबार की घटिया पत्रकारिता के कारण कैसे एक महिला के आत्मसम्मान को तार-तार कर दिया गया और जब उस महिला ने इस घटिया पत्रकारिता के खिलाफ शिकायत की तो उन्हें इंसाफ और माफी के जगह लगातार एक तरफ़ा रिपोर्टिंग का शिकार होना पड़ा । उस महिला के पक्ष में खड़े होकर भड़ास नें पत्रकारिता के रूतबे को गिरने से रोका भी और  प्रेस क्लब में प्रेस के खिलाफ आयोजन कर एक नया उदाहरण भी पेश कर दिया ।  मौजूदा दौर की पत्रकारिता का स्तर जितनी तेजी से गिर रहा है उसे लेकर वरिष्ठ पत्रकारों से ज्यादा नये युवा पत्रकारों को चिंतित होना चाहिए क्योकी उनका पूरा भविष्य दांव पर लगा हैं । भड़ास वालों ने इस आयोजन में मुख्य अतिथि सुप्रीम कोर्ट के पुर्व न्यायधीश और  प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया के अध्यक्ष मार्कंडेय काटजू  को  बनाया था । सब ने पत्रकारिता पर अपनी राय रखी जिसके बाद काटजू जी अपनी बात रखने मंच पर आये । काटजू को सुनना बेहद सुखद पल था क्योकी वह जिस बेबाकी से वह अपनी राय रखते है, आपको शायद ही कोई इतना चर्चित शख्स मिले जो समाज, राजनीति,न्यापालिका के बारे में अपनी मुखर राय रखता हो । काटजू ने पत्रकारिता पर अपनी राय रखते हुए कहा कि  कुछ पत्रकारों,  मीडिया मालिको और नेताओं के गठजोड़ ने पूरी पत्रकारीता को बदनाम कर दिया है । पत्रकारों को अपना घर भी चलाना और अपनी साख भी बचानी है ऐसे में उसकी मजबूरी हो जाती है कि वह अपने मालिक की जी हूजुरी करें वहीं काटजू ने सट्रिंगर्स के हालत पर भी चिंता जताई । काटजू ने गिरते स्तर की पत्रकारिता से लेकर भारत में बदलाव तक की बात कहीं। उन्होनें गरीबों के  जीवन स्तर को सुधारने पर जोर देते हुए कहा की जब तक देश के गरीबों का जीवन स्तर नहीं बदलेगा तब तक किसी भी प्रकार की प्रगती बैमानी है । उन्होंने एक टीवी चैनल पर कहे गए बात को दोहरते हुए देश के ज्यादातर नेताओं को धूर्त और फांसी पर लटकाने की बात  कही। काटजू अपने बातों के पक्ष में कई तर्क भी देते हुए दिखे । जब पत्रकारीता की बात खत्म हुई तो काटजू ने गांधी और बोस को ऐजेंट कहने को लेकर तर्क दिए । उन्होंने क्रांति आने की बात तो बार- बार कही लेकिन उसका रूप रेखा नहीं बताया ,हालांकि उन्होंने गोरिल्ला वार का जिक्र जरूर किया । न्यायपालिका को लेकर भी काटजू की राय कुछ अच्छी नहीं है । वो सुस्त न्याय व्यवस्था को लेकर बेहद दुखी और निराश नजर आये । जब मांस को लेकर बात शुरू हुई तो उन्होनें कई किस्से भी बताये और साथ ही जिन्ना तक को पोर्क खाना वाला कह दिया । 
प्रशनकाल के वक्त कई लोगों ने काटजू से सवाल पूछा । शुरू में कुछ लोगो ने उनसे ताकतवार लोगों के खिलाफ न्याय की लड़ाई लड़ने को लेकर जब राय मांगी तो उन्होंने कहा कि एक मामूली आदमी शेर से लड़ेगा तो शेर उसे तो  चीर देगा । मुझे यह बात एक रूप में अच्छी लगी की वो कड़वी घुटी लोगों को दे रहे हैं लेकिन एक पूर्व जज द्वारा कही गयी ये बातें मुझे सिस्टम के प्रति बेहद ही उदासीन बनाने वाली लगी। वही दूसरे प्रशन पर  कुछ लोगो ने उनसे क्रांति कैसे आएगी इसको लेकर सवाल किया तो उनका जवाब थी कि क्रांति तो आएगी  लेकिन कब और कैसे यह तय नहीं है । मुझे इस सवाल को सुनने के बाद ऐसा लगा की हम लोगो के अंदर एक बुरी आदत यह भी है कि यदि हमें कोई  अंधेरे में रोशनी दिखाता है तो हम सब कुछ उस रोशनी दिखाने वाले से उम्मीद करने लगते है और अपने लिए नये रास्ते बनाने के जगह उसके पीछे चलना चाहते है जो बेहद खेदजनक हैं। 
इन सब के बावजुद एक सिस्टम के अंदर काम करते रहने के बाद भी अपने क्षेत्र के काम की आलोचना करने वाले पत्रकारों ने इस आयोजन में  बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया और ऐसे लोगों को एक धागे में बांधने के लिए भड़ास4 मीडिया के संस्थापक यशवंत सिंह जिसे आप मीडिया के सरदार खान के रूप में भी देख सकते है उनकी प्रशंसा तो करनी ही चाहिए ।           

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