Tuesday, October 20, 2015

हम बिहारी शौचालय वाले !



प्रिय प्रधानमंत्री जी,
        मैं ऋषि राज पेशे से पत्रकार हूं और यह पत्र मेरे और मेरे जैसे लाखों बिहारीयों के उम्मीद की गठरी हैं। मैं यह पत्र इसलिए नहीं लिख रहा हूं कि मुझे आपसे जवाब चाहिए ब्लकि इसलिए लिख रहा हूं कि आप गरीब लोगो कि व्यथा और परेशानी बड़े अच्छे से समझ सकते है साथ ही उस कष्ट को दूर करने के लिए कोई निर्णायक कदम ले सकें । प्रधानमंत्री जी मैं पिछले 5 साल से दिल्ली में रहता हूं । उसके पहले मैं यह नहीं जानता था कि रेल इस देश में एक विकट समस्या के रूप में हम सबके सामने उभरा है। हमारे बिहार में बहुत ज्यादा अच्छी शिक्षा और रोजगार नहीं होने के कारण अपने राज्य से लगातार पलायन करके दूसरे राज्यों में जा रहे है। हालंकि बिहार बंटने के बाद मैं झारखंड की ओर आ गया था क्योकी पिताजी वहीं नौकरी कर रहें थे लेकिन अब पापा रिटायर हो चुके है और अपना पता बिहार हो चुका हैं।बहरहाल ,यह उम्मीद की गठरी आप तक इसलिए पहुंचा रहा हुं कि अब वो दर्द सहा नहीं जा रहा है और आपसे उम्मीद भी बहुत हैं । हमारे पुरे बिहार में छठ एक  ऐसा पर्व है जिसे पूरा घर मनाता है ठीक वैसे ही जैसे आपके गुजरात में नवरात्र और गरबा के मायने हैं। इस पर्व को लोग मनाने के लिए देश –विदेश से छुट्टी लेकर घर वापस जाते है और इस 4 दिन के पर्व में अपना सबकुछ देने को तैयार रहते हैं।  घर लौटने वालों में एक बड़ी संख्या मजदूर और आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग की होती है । ये लोग ट्रेन में कंर्फम टिकट खरीदने तक की हैसियत नहीं रखते क्योकी जो भी दो पैसे बच जाते है उससे ये गुड्डु  ,पिंकी, पिंकी की मां और पिंकी के दादा-दादी को सस्ते नये कपड़े दिलाने की कोशिश करते हैं। ये लोग छठ पर्व के शुरू होने से तकरीबन 7 दिन पहले घर लौटने लगते हैं। चुकि लौटने वाले हम बिहारीयो की संख्या हजारों में होती है तो हम लोगो को अनेक असुविधाओ का सामना करना पड़ता है।सबसे पहले हमें जनरल डब्बे में चढ़ने के लिए घंटो पहले लाईन में लगना पड़ता है और वहां मौजूद पुलिस वाले हम पर जी भर के लाठी बरसाते है । वो लाठी चलाते वक्त यह भी नहीं देखते की उनकी लाठी किस पर और कहां पड़ रही है। वो हमें रिफ्यूजी या एक ऐसा हिस्सा मानते है जो समाज पर बोझ है लेकिन हम लोग किसी पर बोझ न बने इसीलिए तो अपने घर –बार के मोह को छोड़ कर दूसरे राज्यो में नौकरी करने आ गये । ट्रेन में चढ़ने के लिए हमें केवले दरवाजा नहीं ब्लकि खिड़कियों का भी इस्तमाल करना पड़ता हैं। हमें कोई सीट की उम्मीद नहीं होती हम लोग तो ट्रेन के फर्स पर बैठ कर भी जा सकते है । मौजूदा हालात में हम लोग और हमारे घर की मां –बहने तो  18-19 घंटे  बिना कुछ खाये ट्रेन के शौचालय में बैठ कर चले हैं। क्या हम एक बेहतर हालात में अपने घर जाने के भी हकदार नहीं है। आप सोचिए सर, शौचालय में बैठकर जाना और उससे पहले ट्रेन में चढ़ने के बैचेनी में सिपाहीयों की लाठी क्या यह उचित है । आप तो पूरे भारत को अपना मानते है ऐसे में लाठी मारने वाले से लेकर लाठी खाने और शौचालय में बैठ कर जाने वाली मां-बहन भी आपके हुए ।क्या आप उन्हें एक बेहतर हालात नहीं दे सकते । सर , हम लोगो के लिए छठ सब कुछ है इसबार छठ में घर जाने के लिए कुछ बेहतर इंतजाम करवा दिजिए ।
ऐसा नही है कि मैं आपसे केवल सवाल कर रहा हूं मैं आपको सुझाव भी देना चाहता हूं ।आपसे निवदेन है कि टिकट कंर्फम देने की प्रतिबध्ता के बीच छठ पर्व से कुछ दिन पहले 4-5 ट्रेन ऐसी चलावायी जाए जिसमे केवल जनरल डिब्बे हो । इससे लोगो को एक सहुलियत यह मिलेगी कि उन्हें शौचालय में बैठ कर जाने के लिए मजबूर नहीं होना होगा ।
मैं अपनी और लाखों बिहारीयों की उम्मीद की गठरी आपको भेज रहा हूं कि इस उम्मीद के साथ कि आप हमारे दिक्कतों को समझ कर हमें इस बार शौचालय में बैठ कर घर नहीं जाने देंगे । और सर प्लीज़-प्लीज़ कम से कम लाठी न चलाने का आदेश तो दे ही दिजीएगा बहुत जोऱ से चोट लगता है सर।
                                                        आपका उम्मीदी
                                                           बिहारी  

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