Monday, January 12, 2015

सियासत..केजरीवाल..और हम लोग !

कौन जीतेगा ,कौन हारेगा ,कैसे किसी दुसरे दल को छोटा दिखा कर अपना कद बड़ा कर लिया जाये ,इन सब माथापच्ची के बीच एक बड़ा सवाल ये की क्या केजरीवाल भी हार जायेंगे ? जी, इस सियासत के बीच केजरीवाल एक ऐसे पहलु है जिसे देश के प्रधानमंत्री से लेकर ,दूसरे दल के नेता, उम्मीदवार, निर्दलीय प्रत्याशी ,वोट डालने वाली जनता, मीडिया और सोशल मीडिया कोई भी नकार नही सकता या यू कहिये की दिल्ली की सियासत बिना केजरीवाल के पूरी ही नहीं हो सकती । अब बात केजरीवाल पर लगने वाले आरोपों की करे तो केजरीवाल के दामन में कई दाग दिखते है लेकिन महज सियासी जो किसी रूप में उनको नुकसान नहीं पंहुचा सकते । बात दिल्ली के 49 दिनों के सरकार से शुरू करे तो केजरीवाल को भगोड़ा और सत्ता का लोभी कहा गया लेकिन देखा जाये तो सत्ता की ललक अगर केजरीवाल में रहती तो वो कतई दिल्ली की गद्दी छोड़ बनारस मोदी को सीधा टक्कर देने नही पहुचते । केजरीवाल का सीधा और सटीक मकसद जनता को उस सिस्टम का स्वाद चखाना था जिसमे जनता मालिक और नेता जवाबदेह होता है लेकिन कही ना कही मोदी के सामने कोई करिश्माई चेहरा ना पेश कर पाना और बीजेपी के मुकाबले मीडिया और मार्किट को कंट्रोल ना कर पाना केजरीवाल को 443 प्रत्याशियों में 4 जीत के बीच समेट के रख दिया । पार्टी के अन्दर कलह और कई चेहरों का पार्टी को छोड़ जाना केजरीवाल को कटघरे में खड़ा कर गया लेकिन सवालों के बीच कई चेहरों ने ये तक आरोप लगा दिया की पार्टी में उनकी कद घट गयी है ! जब गौर से इस मसले को देखेंगे तो मालूम होगा की ये आरोप उस नेता ने लगाया जिसने पार्टी के तरफ से 6 महीनो में दो चुनाव लड़ लिया था तो ऐसे सूरत में तरजीह ना मिलने का सवाल ही नही है तो फिर आरोप खुद शक के दायरे में आ जाते है । अब बात अगर बिजली पानी की करे तो आम आदमी पार्टी पर बीजेपी मुफ्तखोरी का आरोप लगती आई है ठीक वैसे जैसे ये आरोप पहले कांग्रेस पर लगते आये थे । आम आदमी की जरुरतो को देखे तो बिजली और पानी अच्छे जीवन का महत्वपूर्ण हिस्सा है और इन पर हर आम का अधिकार भी है तो ऐसे में मुफ्त पानी और सस्ती बिजली तो हर वो आदमी चाहता है जो बसों और मेट्रो में धक्के खाता काम पर जाता है या फिर मायापुरी और कापसहेड़ा में जीवन जीने के लिए लड़ाई लड़ रहा है या फिर झुग्गी में जीवन के दरिद्र रूप से लड़ रहा गरीब आदमी । जहा तक भ्रष्टाचार से लड़ने का सवाल है तो 'आप' का जन्म ही इस मुद्दे पर हुआ है तो भ्रष्टाचार इस पार्टी के सामने बौनी दिखाई पड़ती है । पिछले कुछ महीनो में आम आदमी पार्टी के चंदे पर सवाल खड़ा करने वालो को सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट दोनों जगह से रुसवाई ही मिली तो मामला यहा भी फसता नही दिखता है । जहा तक सवाल धरना का है तो ये अधिकार सबका है और केजरीवाल को धरना मास्टर कहने से पहले बापू से लेकर खुद सवाल उठाने वाले भी ये देख ले की उनका इतिहास भी कुछ ऐसा ही रहा है । केजरीवाल जिसने आइएस की कुर्सी छोड़ कर दर दर की ठोकर खाने का फैसला लिया ,जनता के लिए खुद की ईमानदारी और देश सेवा के भाव का दूसरे दलों के निशाने पर रख दिया तो ऐसे व्यक्ति को कौन हरा सकता है ।क्या केजरीवाल के निष्ठां पर सवालिया निशान लगाया जा सकता है ? क्या हम हमारे ही अधिकार की लड़ाई लड़ने वाले केजरीवाल को दरकिनार कर सकते है ? क्या हमारे नकारने से केजरीवाल खत्म हो सकता है ? क्या दुसरे दल जिनका इमान ही सत्ता पर काबिज रहना है वो केजरीवाल को मिटा सकते है या फिर आने वाले वक़्त में और भी कई केजरीवाल जन्म लेंगे जो देश की सियासत को अपने ईमानदारी से दो-दो हाथ करने की चुनौती देंगे !

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