Tuesday, January 19, 2016

मरने के बाद रोहित का पहला इंटरव्यू


मौत के बाद पहला इन्टरव्यू

नमस्कार, मैं ऋषिराज आज आपको एक ऐसा इन्टरव्यू पढाने जा रहा हूं जो अपने आप में नये किस्म का हैं। मैने मर चुके दलित छात्र रोहित का इन्टरव्यू किया है । ये मेरी एक कोशिश है कि एक शोषित वर्ग के छात्र को कैसी दिक्कते आयी होंगी । यहां आपको यह भी बता दूं यह इन्टरव्यू  काल्पनिक आधार पर किया गया है।इन्टरव्यू के जवाब रोहित के अंतिम पत्र पर आधारित हैं। यह सब मैने इसलिए लिख दिया क्योकी आज कल लोगो की भावनाए इतनी नाजुक और नंगी हो गयी है की कोई भी उन्हें ठेस पहुंचा देता है ।  आपको यह इन्टरव्यू पढ़ने पर बुरा लगे तो माफ किजीएगा अब वक्त आ चुका है कि हम अपनी गहरी नींद से जाग जाये। इस इन्टरव्यू के सवाल वैसे ही है जैसे आप रोजमर्रा के टेलीविजन में खोखली हो चुकी पत्रकारीता के सवाल  में देखते है ।
रिपोर्टर का सवाल – तो रोहित मरने के बाद आप कैसा महसूस कर रहे हैं ?
रोहित का जवाब- जी , अच्छा और बेहद हल्का मेहसूस कर रहा हूं । अब केवल मै और मेरी आत्मा हैं । हम अब आराम से अपने मन के मुताबिक  अपने चुने हुए विषयो पर बात कर रहै है । यहा कोई और नही है जो मेरे बात करने या किसी विषय पर राय रखने पर मुझे देशद्रोही करार दे दे ।मैं जिंदा रहने से ज्यादा मर कर खुश हूं।
रिपोर्टर का सवाल – रोहित आपने आत्महत्या क्यो की ?
रोहित का जवाब- सब शुन्य हो चुका था । मैं खुद के शरीर और रूह के बीच एक खाई महसूस कर रहा था, दुनिया खोखली है ,सब दिखावटी  लोग है जो इस दुनिया में रहते है ।
रिपोर्टर का सवाल-  क्या आप अपने विश्वविधालय में जातिवादी और देशद्रोही गतिविधी कर रहे थे?
रोहित का जवाब- देश में कई ऐसे वर्ग के लोग है जो किसी के भी फांसी के पक्ष नहीं हैं। कई जज से लेकर मशहूर अभिनेता तक फांसी के पक्ष में नहीं है। हम लोग भी उसी पक्ष का एक हिस्सा थे । देश आजाद है हमें अपनी राय रखने का पुरा अधिकार है तो फिर हम देशद्रोही कैसे हो गये ? अफजल गुरू के वक्त भी कई नेताओ ने फांसी का विरोध किया ये लोग उन्हे देशद्रोही करार क्यो नहीं देते ?
रिपोर्टर का सवाल - तो आप मानते है कि याकूब को गलत सजा दी गयी?
रोहित का जवाब-  नहीं , मैं आपको बता दू कि हम फांसी देने के खिलाफ है किसी भी गुनहगार को फांसी न दी जाये हम इसके पक्ष में हैं। फांसी के अलावा कोई और भी सजा दी जा सकती हैं ।
रिपोर्टर का सवाल- आप दलित है क्या इस वजह से आपके साथ ऐसा किया गया ?
रोहित का जवाब- मैं ऐसा नहीं मानता, मेरा तो बचपन ही एक त्रासदी की तरह गुजरा है और बिल्कुल खाली । बचपन से लेकर अबतक ऐसा ही हुआ है और मेरे से पहले भी यही होता आया है ।
रिपोर्टर का सवाल- क्या आपको मालूम था कि आपके मरने के बाद लोग कैसे रिएक्ट करेंगे ?
रोहित का जवाब- हां शायद मुझे मालूम था कि मेरे मरने पर लोग मुझे कायर कहेंगे, वो यह भी कहेंगे की एक एजेंडे के तहत मै हिन्दुओ को विरोध करता था लेकिन  यकिन मानिए मुझ इन बातों से फर्क नहीं पड़ता । मै इन चीजो का आदी हो चुका हूं और उनके सोच पर अब मुझे तरस आता हैं।
रिपोर्टर का सवाल- आपको सरकार से शिकायत है ?
रोहित का जवाब- नहीं , मुझे अब किसी से शिकायत नहीं है । मैं क्या हम सब इस व्यवसथा के आदि हो चुके है जहां लोकतत्र के नाम पर सरकार जनता पर ही हुकुमत करती है ।
रिपोर्टर का सवाल-  आपने जान देने से पहले अपने परिवार के बारे में नहीं सोचा ?
रोहित का जवाब – सब कुछ सोच समझ कर किया । हर पहलु के बारे में सोचा और जब मन से शुन्य हो गया तो मुझे जीने से ज्यादा मरने में खुशी दिख रही थी । तो एक पत्र लिखा और फिर ....
रिपोर्टर का सवाल- आप 13 दिनों तक खुले आसमान में सोते रहे इसके पहले आप और आपके साथियो पर करावाई के लिए सरकार व्दारा लगातार पत्र लिखे जा रहे थे उसपर कोई टिप्पनी करना चाहेगे ?  
 रोहित का जवाब-  नही, जिसे जो करना  अच्छा लगा उसने वो किया ।यहां सभी दिखवटी लोग है मै किसी से कुछ नही कहुंगा ।
रिपोर्टर का सवाल- आपके दोस्त और आपसे हमदर्दी रखने वाले  लोग सड़क पर है ?
रोहित का जवाब- मुझे नहीं मालूम था कि इतने लोग मेरे लिए खड़े होगे । लेकिन मुझे इस बात का दुख है कि ये लोग अगर शुरू से इतने जागरूक होते और लगातार आवाज उठाते तो किसी दलित को शोषित ही न होना पड़ता ।
रिपोर्टर का सवाल- अब आप मर चुके है लेकिन आपके मरने पर खूब राजनीति हो रही है?
रोहित का जवाब – अच्छा है शायद मेरे बाद मेरे किसी दोस्त को ऐसा कदम उठाने की जरूरत न पड़े लेकिन इसकी उम्मीद बहुत कम है ?
रिपोर्टर का सवाल – तो आप....(रोहित बीच मे रिपोर्टर को रोकते हुए )
रोहित- आप भी तो मेरे मरने के बाद आये शायद आपको इसी का इंतजार था कि कोई दलित मरे और फिर इसकी मौत पर जी भर कर तमाशा किया जा सके ...
( रोहित गायब हो जाते है )
रिपोर्टर का मुहं लटक जाता है और फिर वह भी ....

Sunday, January 17, 2016

रोहित भाई काश तुम दलित न होते!


अगर रोहित दलित नहीं होता तो शायद उसे होस्टल से नहीं निकलते । शायद उसका समाजिक बहिष्कार नहीं होता! उसके माँ बाप आज उसके शरीर से लिपट कर रो नहीं रहे होते ।
देखी तेरी रौब करारी..
ओ सरकारी..
तू तो निकली हत्यारी...

पढ़िए दलित युवक रोहित ने मरने से पहले क्या लिखा, और हम सब को सच का सामना करा गया।।

Good morning,
I would not be around when you read this letter. Don’t get angry on me. I know some of you truly cared for me, loved me and treated me very well. I have no complaints on anyone. It was always with myself I had problems. I feel a growing gap between my soul and my body. And I have become a monster. I always wanted to be a writer. A writer of science, like Carl Sagan. At last, this is the only letter I am getting to write.

I always wanted to be a writer. A writer of science, like Carl Sagan.
I loved Science, Stars, Nature, but then I loved people without knowing that people have long since divorced from nature. Our feelings are second handed. Our love is constructed. Our beliefs colored. Our originality valid through artificial art. It has become truly difficult to love without getting hurt.
The value of a man was reduced to his immediate identity and nearest possibility. To a vote. To a number. To a thing. Never was a man treated as a mind. As a glorious thing made up of star dust. In very field, in studies, in streets, in politics, and in dying and living.

I am writing this kind of letter for the first time. My first time of a final letter. Forgive me if I fail to make sense.

My birth is my fatal accident. I can never recover from my childhood loneliness. The unappreciated child from my past.
May be I was wrong, all the while, in understanding world. In understanding love, pain, life, death. There was no urgency. But I always was rushing. Desperate to start a life. All the while, some people, for them, life itself is curse. My birth is my fatal accident. I can never recover from my childhood loneliness. The unappreciated child from my past.

I am not hurt at this moment. I am not sad. I am just empty. Unconcerned about myself. That’s pathetic. And that’s why I am doing this.


objects in mirror are (never) closer than they appear. (From Rohit’s Facebook Wall)
People may dub me as a coward. And selfish, or stupid once I am gone. I am not bothered about what I am called. I don’t believe in after-death stories, ghosts, or spirits. If there is anything at all I believe, I believe that I can travel to the stars. And know about the other worlds.

If you, who is reading this letter can do anything for me, I have to get 7 months of my fellowship, one lakh and seventy five thousand rupees. Please see to it that my family is paid that. I have to give some 40 thousand to Ramji. He never asked them back. But please pay that to him from that.

Let my funeral be silent and smooth. Behave like I just appeared and gone. Do not shed tears for me. Know that I am happy dead than being alive.

“From shadows to the stars.”

Uma anna, sorry for using your room for this thing.

To ASA family, sorry for disappointing all of you. You loved me very much. I wish all the very best for the future.

For one last time,

Jai Bheem

I forgot to write the formalities. No one is responsible for my this act of killing myself.
No one has instigated me, whether by their acts or by their words to this act.
This is my decision and I am the only one responsible for this.
Do not trouble my friends and enemies on this after I am gone.

Tuesday, January 12, 2016

देश को एक नहीं अनेक जल मानव चाहिए...!

  
जल ही जीवन है यह बात आप और हम सब बचपन से ही सुनते आ रहे है लेकिन इसके मायने को समझने के लिए हमें अपने सोच को विकसीत करने की जरूरत है। एक वक्त था जब देश के लोग नदी और तलाब की पानी पिया करते थे जिसके बाद  कुंए का निर्माण हुआ  फिर लोग चापाकल(हैंडपंप)का इस्तमाल करने लगे और आज के वक्त हम नल के पानी से लेकर बोतल बंद पानी का इस्तमाल करने लगे  है । इन सब के बीच हम इस बात का ध्यान रखना भूल गये कि हम लगातार विकास के  साथ कदमताल करने के ऐवज में अपने इलाके के नदी –तलाबो को ही खत्म कर बैठे । हमने न केवल  नदी –तलाबो को खत्म ही नहीं किया बल्कि जल की गुणवक्ता को खराब करने में पूरी भूमिका निभायी । अब हमें ऐसा वक्त भी देखने को मिल रहा है जहां पानी पर अधिकार के लिए लड़ाई तक की जा रही है।  हमारे देश में भी जल बटवारे को लेकर कई राज्यो में आपसी तकरार हैं। यही कहानी हमें विश्व के कई अन्य देशों में भी देखने को मिल रही हैं। पानी एक ऐसा आधार है जो किसी ईलाके के बसने और उजडने का मुख्य कारक होता हैं लेकिन हम इंसानी फितरत वाले लोग जो ठहरे, हमने जल संरक्षण के जगह उंची इमारतो और फैक्ट्रीयों को तरजीह दी, शहर और गांव में गिरते जल स्तर को बचाने के जगह बोतल बंद पानी को तरजीह दी । आज के मौजूदा हालत ऐसे हो चले है जहां पानी उपल्बध न होने के कारण लोग अपने पैतृक निवास को छोड़ने पर मजबूर हैं। पानी की मौजूदगी नहीं होने से किसान खेती छोड़ रहे है तो कहीं किसानो की फसलें बर्बाद हो रही हैं। हमारे देश में विदर्भ और बुंदेलखंड जैसे ईलाके से खेती करना मौत को गले से लगाने जैसा माना जाने लगा हैं । हमें जरूरत है कि ऐसी विचारधारा को बदला जाये और खेती छोड़ रहे किसानो को दुबारा मुख्यधारा में लाया जाये ।हम ऐसा तभी कर सकते है जब हम जल संरक्षण को लेकर तेजी से काम करना शुरू कर दे । हमारे देश की सरकार इस तरफ कब सोचेगी यह तो कहना मुशकिल है लेकिन समाज में अपनी जिम्मेदारीये को समझने वाले लोग इस दिशा में दशकों से काम कर रहे है। राजस्थान के राजेन्द्र सिंह भी उन लोगो में से एक है जो जल सरक्षण को अपने जीवन का मकसद मानकर इस दिशा में काम कर रहे हैं। इन्होने जल संरक्षण से राजस्थान की मर चुकी 7 नदीयो को जिदां किया हैं साथ ही 1000 गांवो में दुबारा पानी को पहुंचाया है। इनके काम को देखते है हुए इन्हें कई अंतराष्ट्रीय मंचो पर सम्मानित किया जा चुका हैं। बहरहाल ,हमें जरूरत है कि सरकार ऐसे लोगो को एक मंच प्रदान करे जिससे ये  लोग जल संरक्षण की चेतना को लोगो के अंदर जगाये । ये बेहद ही दुर्भाग्यपुर्ण है कि राजेन्द्र सिंह (जल मानव ) जैसे लोगो का  ईस्तमाल देश और राज्य की किसी भी सरकार ने नहीं किया । यहा यह कहना भी जायज नही है कि सरकार ने कभी अपने स्तर से जल सरंक्षण के विषय पर गंभीरता से काम किया होगा अगर किया होता तो हमारे सामने खेतो में किसानो की लटकती लाशे नहीं होती।  जैसे- जैसे वक्त बीतेगा पानी की समस्या और गहराती चली जायेगी । खतरा इस बात का भी है कि तीसरा विश्व युध्द पानी को लेकर लड़ा जा सकता है ।क्या वाकई हम इतने गैर-जिम्मेदार हो चुके है या फिर हम इतने खुदगर्ज हो गये है कि पानी जैसे गंभीर विषयों पर चर्चा तो दूर कभी अकेले में बैठ कर सोचते तक नहीं है । क्या देश की सरकार केवल और केवल कंक्रिट के जंगल को खड़ा कर हम तक हर सुविधा पहुंचा सकती है ?क्या देश के किसानो और सुखे पड चुके इलाको के प्रति हमारी कोई जिम्मेदारी ही नहीं बची है ? अन्न पैदा करने वाले कब तक अन्न के अभाव में बिना अन्न के प्राण त्यागते रहेंगे ? हमारे विकसीत हो जाने के चाह के बीच यह भी जरूरी है कि हम अपने नींव को जड़ से मजबूत करें और राजेन्द्र सिंह (जल मानव) जैसे लोगो की संख्या समाज में बढ़े इस दिशा में कोशिश करनी चाहिए वरना  वह दिन भी दूर नहीं होगा जब हम एक बोतल पानी के बदले एक जान लेने तक के लिए तैयार हो जाये । जल संरक्षण ही ऐसा एक मंत्र है जिससे सुखे इलाको को हरा भरा किया जा सकता है, फसले फिर से लहलहा सकती है और किसानो के घर भी ठहाको की अवाज सुनाई पड़ सकती हैं ।