Thursday, September 10, 2015

लालू का बिहार और बिहार का लालू


लालू का बिहार और बिहार का लालू हो जाना
 जी, बिहार विधानसभा में हर पार्टी का मुख्यमुद्दा यही है कि बिहार में सत्ता में कौन आएगा और कैसे आएगा  ? इसके लिए हर पार्टी अपने तौर-तरीके से चुनावी क्षेत्र में उतरने जा रही है । लेकिन मेरे नज़र में बिहार में सारी राजनीति लालू का बिहार और बिहार का लालू हो जाना है । शुरुआत लालू के उस दौर से करते है जब लालू सत्ता में काबिज हुए थे और 15 साल सत्ता में रहे । लालू पर जंगलराज और बिहार को गर्त में ढकेल देने का आरोप लगा । जब लालू सत्ता में  तो उस वक़्त   बिहार में स्वर्णो का जबरदस्त तरीके से हुकुमत चलता था । दलितों को समाज में वो अधिकार नहीं था जो स्वर्णो को था । दलितों का शोषण होना  और उनसे जबरदस्ती बन्धुआ मजदूरी करवाना आम बात थी । लालू जब सत्ता में आये तो समाजिक तौर पर दलितों के अंदर भरोसा पैदा करने का काम किया । समाज में जो दलितों को बोलने और स्वर्णो के समान बैठने का अधिकार नहीं था उसके खात्मे का काम किया । आप आज के दौर का बिहार देख लीजिए ज्यादातर जगह में आज दलितों को दबाया नहीं जा सकता है और सच्चाई ये भी है कि समाज से बुराई पूरी तरह नहीं ख़त्म हो सकता । अगर यह हक़ीक़त नहीं है तो लालू को जनता ने 3 बार लगातार क्यों जीत दिलाई होती । हा ये सच है कि लालू की सरकार बिजली और सड़क के मोर्चे पर पूरी तरह विफल रही । लालू के दौर में जंगलराज का जिक्र होता है और कानून व्यवस्था भी धुमिल होने की बात कही जाती है ।आप इस मोर्चे में लालू यादव को फेल मान सकते है लेकिन जिस राज्य में दलितों और पिछडो को जूते के नोख पर रखा जाता हो वहा समाजिक न्याय करने में कानून व्यवस्था का लड़खड़ाना तो लाजमी है खैर इस तरीके से किसी भी क्रिया का हम समर्थन  नहीं करते है । 15 साल तक सत्ता में रहने के बाद लालू सत्ता से जब बेदखल हुए तो बुरी तरह   । लालू को हार भी ऐसे मिली जिसने उनको चारो खाने चित कर दिया । हाशिए पर पड़े लालू को जब केंद्र में रेल मंत्री बनाया गया तो सब के इस आंकलन को लालू ने धता बता दिया कि रेल का हाल बिहार की तरह हो जायेगा । लालू ने भारतीय रेल का कायाकल्प किया । रेल को प्रॉफिट में चलाया साथ ही  रेल कर्मचारियों के बदहाली को दूर किया । बिहार के कई हिस्सों में रेल की परियोजनाएं साथ ही त्योहारो के मौके पर बिहार और अन्य राज्यो के लिए वैकल्पिक ट्रेन इतनी चलाई गयी कि हर इंसान आसानी से अपने घर गया। तत्काल टिकट आसानी से उपलब्ध होती थी साथ ही गरीब रथ जैसी ट्रेनों को चलवाना लालू की बड़ी उपलब्धि रही । रेल में दिए जाने वाले खाने हो या फिर कुल्लढ़ की चाय लालू ने सबको सुपरहिट किया । इसमें किसी प्रकार की दोराय नहीं है ।  लालू के जाने के बाद रेल फिर से दुर्गति में चलने लगा । बीजेपी की सरकार के वक़्त कन्फर्म टिकट सौदा बढ़ाने के लिए जेनरल डब्बो की संख्या में भारी कटौती  कर दी गयी । लोग त्यौहारो में घर जाने के लिए ट्रेन के बाथरूम में बैठ कर गए । इससे बुरा क्या हो सकता है । लोगो बिहार को पिछड़ा बोलते है बीमारू बोलते है  और जिम्मेवार पिछली सरकारो को मानते है । सन् 2000 के पहले बिहार में संसाधन था लेकिन बिहार इतना बड़ा था कि पुरे राज्य का विकास होना वह भी एक साथ संभव नहीं था ।साल 2000 में अटल विहारी वाजपेयी की सरकार ने बिहार से झारखण्ड को अलग कर दिया गया । झारखण्ड के अलग होते ही कोयला ,खनिज और कई अन्य पदार्थ झारखण्ड की झोली में चला गया । जो बिहार उपजाऊ था वो बटवारे के साथ खाऊ बन गया । उस वक़्त कि सरकार ने बिहार को विशेष राज्य का दर्जा तक नहीं दिया और बिहार दुर्गति के रास्ते पर चल निकला । हालाँकि दूसरे राज्यो को विशेष राज्य का दर्जा मिला जैसे उत्तराखंड, तेलांगना ,हिमाचल । आज के दौर में ये सभी राज्य खाऊ से उपजाऊ  बन गए लेकिन बिहार जस का तस । अब आप बताइये कि बिहार का  सन् 2000 के पहले और सन् 2000 के बाद का दुर्गति का जिम्मेवार किसे माना जाये । आज के वक़्त में लालू को चारा घोटाले में सजा होने के कारण वो चुनावी प्रक्रिया से दूर है  । वो केंद्र से भी गए और राज्य से भी लेकिन आज फिर बिहार में चुनाव है और लालू अपनी पार्टी के लिए ताल ठोक रहे है । लालू के साथ नीतीश बाबू है जिन्होंने लाख कठिनाइयों के बाद भी बिहार को विकास दिखाया है । दूसरी तरफ वही बीजेपी है जिसने बिहार को बाटा था। अब तय आपको अपने विवेक से करना है कि लालू का बिहार बनाना है जिसमे समाजिक न्याय और विकास का कॉकटेल है या फिर बिहार का लालू बनाना है जिसमे लालू की दुर्गति जैसी बिहार की दुर्गति हो जाये ।