Wednesday, January 14, 2015

सेक्स...उफ्फ्फ...ये हिचक कैसी ?

सेक्स, क्यों नाम सुनते ही शरीर में सिहरन सी पैदा होने लगी ।अरे शर्माइये नहीं जनाब पूरा लेख पढ़िए और सेक्स में होने वाले रोमांच से ज्यादा सेक्स को समझने की कोशिश कीजिये ,यकीन मानिये जिन्दगी खूबसूरत हो जाएगी । तो सबसे पहले आप अपने अगल बगल झाक कर ये देखना बंद कीजिये की कही सेक्स के बारे में पढ़ते हुए कोई आपको देख तो नही रहा है उससे पहले आप अपने अंतर्मन ये सवाल कीजिये कि जिस प्रक्रिया से आपका प्रजनन हुआ वो छुपाने और झिझक पैदा करने वाला कैसे हो सकता है ? आप बात तक नही करना चाहते इस मसले पर तो बदलते वक़्त का स्वागत कैसे करेंगे ? सेक्स एक कला है ,जो अजन्ता -एलोरा की मूर्तिय चीख-चीख कर यही तो कहती है लेकिन हम संस्कृति का तमगा लेकर इस मुद्दे को कभी आगे बढने नहीं देते ,सेक्स करते है छुप-छुप कर, सेक्स देखते है छुप-छुप कर ,बाते वो नाम ही मत लो भाई साहब !सेक्स की बात लड़का -लड़की से बात नही कर सकता ,कोई किसी को सेक्स के बारे में ठीक -ठीक समझा भी नहीं सकता । बात करिए तो धीरे-धीरे ताकि कोई सुन ना ले । अब सेक्स के अहम पहलु पर बात करते है जिसके हिस्से में कई सवाल है जैसे अगर सेक्स आपत्ति जनक नही है तो माँ-बाप के सामने क्यों नही करते, क्या कोई भाई अपनी बहन को सेक्स करते देख स्वीकार कर सकता है ? अब आप ये समझिये की सेक्स क्या है ? सेक्स केवल संभोग की प्रक्रिया नही है । ये एक कला है जिसके कई हिस्से है ,प्यार का इजहार करना, प्यार जताना, प्यार करना । अगर भारत से बाहर पश्चिमी देशो को देखे तो वहा सेक्स जीवन का हिस्सा है जो उन्हें ख़ुशी ,बढ़िया शरीर और एक दुसरे पर प्यार जताने की जरिया है । रजनीश ओशो ने भी दुनिया को ये बात समझाने की कोशिश की जिसमे भारत यानि हमारा देश उनकी बात को समझना तो दूर ज्यादा सुनना भी पसंद नहीं करता था और आज की परिस्थितिया आप के सामने है ।खैर मसला इतना ही नहीं है हम सेक्स को कला के रूप में अपनाने से चूक गए और यही से सेक्स के लिए हमारी सोच सिकुड़ती चली गयी जिसका नतीजा वैश्यावृति ,बलात्कार, बीवी के साथ बिस्तर पर जबरदस्ती ,यौनिक हिंसा, लड़का-लड़की में भेद भाव ,लड़की शादी से पहले सेक्स कर ले तो हाय तौबा ,सेक्स सीन को टीवी स्क्रीन पर देखते ही रक्तचाप का बढ़ जाना आदि इत्यादि । हमारे भूतकाल से लेकर वर्तमान काल की यात्रा में जिस चीज को सबसे ज्यादा दबाने की कोशिश की गयी वो सेक्स ही था जो आज नासूर के रूप में पनप रहा है । बहरहाल हम जितनी जल्दी सेक्स को समझ कर उसे अपने दिनचर्या का हिस्सा मान ले तो हम तेजी से विचार की क्रांति में बड़ा बदलाव ला सकेंगे । सेक्स को लेकर हमे आपस में विचार विमर्श करने से लेकर लेखको द्वारा सेक्स के बारे में ज्यादा मात्रा में लिखे जाने की जरुरत है । सेक्स को लेकर अगर हम खुलापन ला सके तो हमारा समाज एड्स के मकडजाल से लड़ कर बहार निकल कर आने में कामयाब हो सकता है । तो फिर समझिये ,विचारिये और बात आगे बढाइये । इस बदलाव और प्रतिस्पर्धा की दुनिया में कही हमारा देश सेक्स जैसी छोटी सी बात में ही ना उलझा रह जाये । सेक्स को लेकर झिझकने से ज्यादा उसे अपनाने की जरुरत है । संस्कृति और सेक्स का कोई लेना देना नही है ,सेक्स केवल संभोग नही है इसके कई पहलू है । बढ़िया जीवन और तंदरुस्त जीवन का रास्ता भी सेक्स के दरवाजे से होकर ही गुजरता है । आप अगर ब्रह्मचारी बन कर इश्वर को पाना चाहते है तो ये मेरा दावा है कि आपसे पहले एक गृहस्त व्यक्ति इश्वर को पा सकता है उसमे ब्रह्मलीन हो सकता है । ब्रह्मचर्य भी एक जीवन पद्वति है लेकिन आज के दौर में ब्रह्मचर्य केवल कुंठा पैदा कर सकता है । सेक्स को समझिये तब जाकर आप सेक्स से ऊपर उठ सकते है ,सेक्स से दूर जाकर नही ! एक ब्रह्मचारी भी लिखित और मौखिक तौर पर सेक्स का ज्ञान हासिल करता है और तब जाकर उसका त्याग करता है ।

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