Sunday, March 3, 2019

पाकिस्तान से बातचीत का मतलब भारत के कश्मीर का बंटवारा है जो किसी को मंजूर नहीं !




तो एजेंडा क्या है ? एजेंडा का पता नहीं लेकिन हर कोई इस होड़ में जरूर है कि वो या तो सत्ता के सबसे करीबी के तौर पर जाना माना जाए या फिर उसे सबसे ज्यादा सत्ता विरोधी का दर्जा दे दिया जाए। सत्ता का दुरुपयोग करने वाले नेहरू ना कोई पहले आदमी थे न पीएम मोदी आखिरी। सत्ता या फिर एक विचारधारा के नेता से आपको उम्मीद होती तो बहुत है लेकिन वो जब पूरी न हो तो आपको अपराध बोध साबित कर देती है !  बात पाकिस्तान से शुरू करें तो ये कभी खत्म न होने वाली बात होगी लेकिन फिर भी अगर आप युद्ध नहीं चाहते तो जाहिर है आप पड़ोसी से बातचीत की उम्मीद रखते हैं, वैसे कुलदीप नैय्यर ने अपनी पुस्तक में साफ साफ लिखा है कि वो नेहरू हो या पटेल या शास्त्री सब ये मानते थे कि पाकिस्तान बात करने लायक मुल्क नहीं है ,उसका मकसद सिर्फ भारत से  झगड़ा है, तो ऐसे में पुर्वजों की बात को लकीर माने तो पाकिस्तान को काबू में करने का एक ही तरीका है कि पहले तो युद्ध का आगाज हो । युद्ध की शुरुआत के बाद जब पड़ोसी मुल्क  पर अपना कब्जा हो । यहाँ में ये साफ करना चाहता हूँ कि पाकिस्तान की आजादी से मुझे कोई तकलीफ नहीं है, बस युद्ध के बाद पाकिस्तान की सेना और आईएसआई को खत्म किया जाए,उसकी सुरक्षा नीति या तो भारत देखें या फिर यूनाइटेड नेशन। दूसरे विकल्प के तौर पाकिस्तान का एक और टुकड़ा हो और जो दूसरा देश बलूचिस्तान बने उसे भारत भूटान की तरह लाड दुलार करें । तीसरा विकल्प ये है कि पाकिस्तान पर भी भारतीय हुकूमत का शासन हो जिसकी संभावना कम ही नजर आती है ।
अब बात करते हैं शांति और  बातचीत की यहाँ मैं ये कह देना चाहता हूँ कि मैं शांति पसंद आदमी हूँ लेकिन लाशों को गिन गिन कर तक गया हूँ और ये बुद्ध का बालक युद्ध चाहता है । हाँ तो बात शांति की , कश्मीर मुद्दे पर लोग बात करके हल चाहते हैं,  हम पाक के कब्जे वाले कश्मीर को अपना मानते हैं और हमारे पास जो कश्मीर है  उसे पाक आजाद कश्मीर या यूं कहिए कि भारत के कब्जे वाला कश्मीर कहता है । ऐसे में बात चीत तो तभी होगी जब दोनों देश कुछ कुर्बानी देंगे, अटल जी के वक़्त कहा जाता है कि दक्षिण कश्मीर के कुछ हिस्से वो पाकिस्तान में देने को तैयार थे जिससे दोनों मुल्क में अमन बहाल हो ! लेकिन ऐसा नहीं हुआ, आगे भी अब जब बात होगी तो यहीं दक्षिण कश्मीर से बात शुरू होगी ऐसे में पाकिस्तान उस कश्मीर से हमे क्या देगा मैं ये तो नहीं जानता लेकिन भारत वाला कश्मीर टूटेगा.. ऐसे में ये जोखिम लेने के लिए न मोदी में कलेजा है न किसी और नेता में ! चूंकि बांग्लादेश से भी जो सीमा  बंटवारा मोदी राज में हुआ उसमें भारत ने बांग्लादेश को ज्यादा कुछ दिया है । बातचीत के दौरान दूसरे देश भी यहीं  चाहेंगे कि भारत बड़ा मुल्क होने के नाते बड़ा दिल दिखाए,इसका खामियाजा सीधे सीधे सत्ता को चुनाव में होगा,क्योंकि हमारे यहाँ मुद्दे जरूरत पर आधारित न होकर भावनाओं पर आधारित होते हैं । बहरहाल फर्ज कीजिये कि कश्मीर में फिर बंटवारा हो जाएं ,दक्षिण कश्मीर के कुछ टुकड़े पाकिस्तान में मिल भी जाये तो कल को पाकिस्तान के पास दुनिया में क्या मुँह दिखाना होगा, सरहद पर तनाव नहीं होगा तो फ्रांस, रूस, अमेरिका, चीन ,इजरायल के हथियारों के कारोबार का क्या होगा ? पाकिस्तान फिर आएगा और इस बार वो गुजरात की सीमा के लिए आपसे लड़ेगा ....

Sunday, March 25, 2018

दिल्ली से खाली हाथ लौटेगा रालेगन का संत ?



23 तारीख सुबह 8 बजकर 40 मिनट , फोन पर मैसेज के मुताबिक अन्ना को 9 बजे तक राजघाट पहुंचना था, राजघाट आम आदमी के लिए बंद कर दिया गया था. 9 बजे से वक्त आगे की तरफ निकल चुका था और मीडिया जुटनी शुरू हो गई थी...सभी इंतजार कर रहे थे और कुछ समर्थक भी वहां जुटने लगे थे, मेरी नजर पुलिस पर थी तो मैने देखा की पुलिस के लकड़ियों में कील लगी तो पटरियां रखी हुई थी मतलब पुलिस की तैयारी थी कि जरुर कुछ होगा लेकिन क्या एक लोकतांत्रिक देश में कील लगी हुई लकड़ी की पटरियां किस काम की, ये तो किसी बुरे से बुरे वक्त में भी इस्तेमाल नहीं किया जाना था, बहरहाल वक्त की सुई 10 पर थी तभी ट्वीटर पर खबर आई की अन्ना राजघाट के लिए निकल चुके है.कुछ पत्रकार हंसी मजाक तो कुछ इस बात का अंदाजा लगा रहे थे कि शायद इस बार अन्ना का आंदोलन ज्यादा टिकेगा नहीं और अन्ना किसी किताब में सीमित रह जाएंगे.. तबतक पुलिसिया सायरन के बीच अन्ना राजघट पहुंचे, अन्ना लगातार पुलिस को साथ नही रहने की हिदायत दे रहे थे, अन्ना की तस्वीर मीडिया कैमरे में कैद कर रही थी, अन्ना ने बापू को याद किया तो उनके आंखो सें आंसू निकल आए.वो बेहद शांत दिखाई दे रहे थे औऱ फिर बापू को फूल चढाने के बाद वो वहीं से चंद कदम दूर बैठ गए.
अन्ना देश के लिए मर रहे हैं और लोग उनके साथ सेल्फी के लिए
 20 मिनट तक अन्ना आंखे बंद किए वहीं बैठे रहे लेकिन उनके पीछे बैठे लोगों की हरकत ने बापू की समाधि के सामने ही वो घृणत काम किया जो किसी भी आंदोलन की हत्या कर देती है. अन्ना के पीछे बैठी महिलाएं और पुरुष लगातार उनके साथ फोटों खिंचवा रहे थे, अन्ना वहीं जमीन पर आंखे बंद किए बैठे रहे लेकिन एक एक करके लोग पीछे से बदलते गए और अपनी अपनी तस्वीर निकलवाते गए,.
टीवी पर देखो मैं दिख रहा हूं...
 जो व्यक्ति अपनी एक फोटो के लिए इतना ललायित हो सकता है वैसे लोग  हमेशा आंदोलन का हिस्सा नहीं हो सकते, ये लोग मौका परस्त लोग है,जाहिर है अन्ना एक बड़ी शख्सियत है लेकिन अगर आप अन्ना के रास्ते नहीं चल सकते तो उनके आंदोलन को नुकसान तो कम से कम मत पहुंचाईये, जब मैं अन्ना कि तस्वीर निकाल रहा था तो उसी वक्त एक आदमी को फोन पर बोलते हुए सुना कि ¨ अरे टीवी खोल कर देख लो मैं दिख रहा हूं, संभवत: फोन पर उस पार व्यक्ति ने जब ये पूछा की किस चैनल पर तो बोला कि कोई सा भी सभी बड़े मीडिया वाले पहुंचें हुए है¨.
अन्ना जब राजघाट से निकले
अन्ना 20 मिनट बाद उठे और फिर धीरे धीरे चलने लगे, इसी बीच कुछ लोगों ने उन्हे नमस्ते किया ,वो लोग मराठी बोल रहे थे अन्ना ने भी मराठी में जवाब दिया और ख्याल रखने को कहा.चंद मिनट पर अन्ना मीडिया के कैमरों से घिर गए, पत्रकार लगातार सवाल करते रहे, अन्ना जवाब देते रहे, पत्रकारों ने कई तरह के सवाल किए अन्ना ने सबके जवाब भी दिए.
रामलीला मैदान पर अन्ना
अन्ना जब 7 साल बाद रामलीला मैदान पहुंचे तो भीड़ 2000 के करीब या उससे थोडा ज्यादा रही थी.मंच पर सिर्फ अन्ना और उनके कोर टीम के सदस्य थे, राजनीतिक व्यक्ति का आंदोलन में स्वागत है लेकिन मंच पर किसी को जगह नहीं है. पुलिस का रवैया भी पिछली बार की तरह नहीं था, इस बार पुलिस बात बात पर उलझने को तैयार दिखी , 50000 रुपया हर दिन किराया लेने वाले राम लीला मैदान में शौच की कोई उचित व्यव्स्था नहीं है .ऐसे में कम से कम एमसीडी पीएम मोदी के स्वच्छता अभियान का तो ख्याल रख लेती.
अन्ना ने खोली मोदी की पोल
अन्ना ने जब वहां लोगों को संबोधित किया तो एक एक करके मोदी सरकार की पोल खोल दी.अन्ना ने बताया की 43 चिट्ठीयों का एक जवाब भी पीएम मोदी ने नहीं दिया है. मोदी खुद को जन नेता कहते है, लोकतंत्र का पुजारी कहते है और प्रदर्शनकारियों की ट्रैन ही कैंसल करवा देते है. आनंदोल में लोग नहीं पहुंचे उसके लिए हथकंडे अपनाए जाते है.अगर पीएम इतने ही ईमानदार है तो लोकयुक्त और लोकपाल की नियुक्ती क्यों नहीं करते.जाहिर है उनकी मंशा में खोट है.
मोदी का मीडिया पर दबाव !
चूंकि मैने इस आंदोलन को पहले दिन से लेकर कवर किया तो शुरुआती दिन से अन्ना के आगे पीछे राष्ट्रीय मीडिया घुम रही थी लेकिन स्टोरी कवर करने के बाद उसे टीवी पर नहीं दिखाया गया. पिछले आंदोलन में मीडिया तो अन्ना के समर्थन में थी लेकिन इस बार वो उसे जगह देने को तैयार नहीं है. जाहिए है जब देश का सबसे तेज चैनल बीजेपी अध्यक्ष के 1 इंटरव्यू को 4 बार चलाता है और उस इंटरव्यू में बातो के बताशे बनाए जाते है तो कई सवाल खड़े होते हैहर जगह मोदी सरकार ने मीडिया पर दबाव बनाया है वो चाहे धमकी देकर हो या फिर किसी तरह का प्रलोभन देकर¨. चूकि मीडिया जब पिछली बार समर्थन दे रहा था तो इस बार दिक्कत क्या है ? इस बार मीडिया पहले से ही सरकार की चमचई कर रही है तो ऐसे में जनता के साथ मीडिया खड़ी नहीं हो सकती !
मोदी सरकार अन्ना से बात नहीं करेगी !
खबर है कि पिछली सरकार की तरह मोदी सरकार दिखने को तैयार नहीं है.वो अपने अख्खड़पन के कारण इस बार चर्चे में है, मीडिया पर दबाव बनाए हुए मोदी सरकार को पता है कि इस बार मीडिया अन्ना को वैसा कवरेज नहीं देगी. जाहिर है न अन्ना टीवी पर दिखेंगे और न लोग रामलीला मैदान पर पहुंचेगे ,ऐसे में सरकार पर दबाव नहीं बनेगा तो जाहिर है कि मोदी सरकार के लिए मुफिद मौका है कि वो अन्ना के आगे नहीं झुके.

खाली हाथ लौटेंग अन्ना !
84 साल की उम्र मे एक बुजुर्ग भूखे पेट लोकपाल और लोकायुक्त की मांग कर रहे है, किसानों के फलस की सहीं कीमत मांग रहे है, स्वामिनाथन की रिपोर्ट लागू करने की मांग कर रहे है और 60 साल से उपर के किसान के लिए 5000 हजार का पेँशन, अन्ना मंदिर में रहते है और उन्हे कुछ चाहिए भी नहीं ऐसे में 84 साल का बुजुर्ग आपके लिए अपनी जान की बाजी लगाने को तैयार है , लेकिन जिस सरकार को आपने चुना है वो अंबानी से अपने पीठ पर धौल लगवा सकता है लेकिन गरीबों के हक मांगने वाले से बात को तैयार नहीं है, सरकार अपने नशे में है ऐसे में अन्ना का अंदोलन हिट हो या फ्लॉप लेकिन अन्ना के आगे सरकार झुकेगी नहीं क्योंकि उसे 2019 की सत्ता हथियानी है, देश भी हिन्दुत्व और सोशल मीडिया ने मशगूल है ,हकीकत से किसी का वास्ता है नहीं तो फिर कोई अचरज की बात नहीं होगी की रालेगन के संत को दिल्ली से इस बार खाली हाथ ही लौटना होगा.



Saturday, March 10, 2018

राइट टू रिजेक्ट को न्यू इंडिया में क्यों जगह नहीं ?




देश में जनता को मतदान के अधिकार के साथ-साथ कई और मौलिक अधिकारों से लैस होना जरुरी है क्योंकि सत्ता की कमान जनता के हाथ में है इस बात का एहसास सत्ता को पूरे 5 साल होना चाहिए
देश में न्यू इंडिया को लेकर कई तरह का कॉन्सेपट दिया जाता है. कई तरह के दावे वादे किए जाते है, पार्दशिता का वादा किया जाता है लेकिन राइट टू रिजेक्ट को लेकर न पिछली सरकार संजिदा दिखी न मौजूदा सरकार . इसमें मौजूदा सरकार को भी रखा इसलिए जा रहा है क्योंकि ये सरकार पार्दशिता, ईमानदारी, भ्रष्टाचार मुक्त भारत के दावे के साथ आई थी लेकिन बीते 4 सालों में सरकार ने इस मुद्दे पर कुछ नहीं किया. आप सोच रहे होंगे राईट टू रिजेक्ट क्यों जरुरी है तो आप ये समझ लीजिए  
देश में जनता को मतदान के अधिकार के साथ-साथ कई और मौलिक अधिकारों से लैस होना जरुरी है क्योंकि सत्ता की कमान जनता के हाथ में है इस बात का एहसास सत्ता को पूरे 5 साल होना चाहिए
   आगे बढ़ने से पहले आप समझिए राइट टू रिजेक्ट का मतलब क्या है ?
राइट दू रिजेक्‍ट का मतलब है अगर कोई व्यक्ति वोट देते समय मौजूदा उम्‍मीदवारों में से किसी को नहीं चुनना चाहता है तो वह 'नान ऑफ दीज' बटन का प्रयोग कर सकता है। इस अधिकार का अर्थ मतदाताओं को इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन में वो सुविधा और अधिकार देना जिसका इस्तेमाल करते हुए वे उम्मीदवारों को नापसंद कर सकें। यदि मतदाता को चुनाव में खड़ा कोई भी उम्मीदवार पसंद नहीं हो तो वह इस विकल्प को चुन सकता है।
भारतीय चुनाव अधिनियम 1961 की धारा 49-ओ के तहत संविधान में बताया गया है कि यदि कोई व्‍यक्ति वोट देते समय मौजूद उम्‍मीदवारों में से किसी को भी नहीं चुनना चाहता है, तो वह ऐसा कर सकता है। यह उसका वोट देने या ना देने का अधिकार है। हालांकि ये धारा किसी प्रत्याशी को रिजेक्ट करने की अनु‍मति नहीं देती है। और इसी धारा को बदल कर अधिकारों को मजबूत करने की बात की जा रही है.
क्या होगा अगर पूरा अधिकार मिल गया तो ?
कानून के जानकारों के अनुसार राइट टू रिजेक्‍ट अगर लागू हो जाता है तो वोटर अपने वोट का सही प्रयोग कर सकते हैं। अगर लोकसभा क्षेत्र में ज्‍यादा से ज्‍यादा वोटर राइट टू रिजेक्‍ट बटन का प्रयोग करता है तो चुनाव आयोग राइट टू रिजेक्‍ट की संख्‍या ज्‍यादा होने की स्थिति में उस क्षेत्र के उम्‍मीदवारों का चुनावी पर्चा खारिज कर सकता है। राइट टू रिजेक्ट का प्रतिशत अधिक होने पर चुनाव खारिज हो जाता है। इसके लागू होने पर प्रजातांत्रिक व्यवस्था में जनप्रतिनिधियों की जिम्मेदारियां जनता के प्रति और बढ़ जाती हैं। ऐसी स्थिति में वहां उपचुनाव कराया जा सकता है।
राजनीतिक दलों का क्या होगा ?
राइट टू रिजेक्‍ट लागू होने के बाद सभी दलों को अपने उम्‍मीदवारों का चयन करते समय काफी दबाव रहेगा और वे दागियों को चुनाव में टिकट देने से बचने का प्रयास करेंगे, जिससे राजनीति में साफ-सुथरी छवी वाले नेता आ सकते हैं। चुनाव के बाद भी जनप्रतिनिधियों पर अपने क्षेत्रों में ज्‍यादा से ज्‍यादा कार्य करने का दबाव होगा, नहीं तो अगले चुनाव में वोटर उन्‍हें रिजेक्‍ट कर सकते हैं।
आपको बता दें कि भारत में राइट टू रिकॉल की बात सबसे पहले लोकनायक जयप्रकाश नारायण ने 4 नवंबर 1974 को संपूर्ण क्रांति के दौरान कही थी। ऐसा माना जाता है कि पुरातन समय में यूनान में एंथेनियन लोकतंत्र में राइट टू रिकॉल कानून लागू था।

‘’बतौर सीएम मोदी राइट टू रिजेक्ट के बारे में बात करते रहते है लेकिन जब पीएम की कमान उनके हाथ आई तो वो चुपचाप गद्दी पर बैठे है. राइट टू रिजेक्ट के पक्ष में आप पीएम मोदी को बतौर सीएम यू ट्यूब पर सुन सकते है.’’
आप इस बात को समझिए की आप अपने सांसद और विधायक को सुविधा, सैलरी, मकान देते है और वो बदले में आपके इलाके का विकास नहीं करके आपके साथ अपने किए वादे तोड़े तो उसे क्यों न उसके पद से बर्खाश्त कर दिया जाएं.
लेकिन पिछली सरकारों की तरह ये सरकार भी नागरिक अधिकारों को लेकर सजग नहीं दिखती है अगर सजग होती तो बीते 4 साल में बहुत कुछ हो सकता है लेकिन लगता है कि न्यू इंडिया के कॉन्सेप्ट में देश के नागरिकों के लिए राइट टू रिजेक्ट की सुविधा उपलब्ध नहीं है.


Sunday, February 25, 2018

सोशल : तो क्या दवाओं ने ली श्री देवी की जान ?





सोशल मीडिया में श्रीदेवी की मौत के बाद से ही ये चर्चा का विषय है की आखिर इतनी फिट दिखने वाली श्री को अचानक ऐसा क्या हुआ की उनकी जान चली गई. दुबई की अखबार ने लिखा है कि जब उन्हें हार्ट अटैक आया तो वो बाथरूम में गिर पड़ीं. इसके बाद उन्हें अस्पताल ले जाया गया लेकिन बचाया नहीं जा सका. दुबई के खलीज टाइम्स को ये जानकारी देते हुए संजय कपूर ने कहा कि वो पूरी तरह से सदमे में हैं. उन्होंने आगे कहा कि श्रीदेवी को हार्ट से जुड़ी कोई बीमारी नहीं थी.  
अब जब श्रीदेवी को कोई बीमारी नहीं थी तो उन्हे अचानक क्या हो गया. जाहिर है अटकलों का बाजार गरम है. तो ऐसे में आम धारनाओ के बीत जो बात है उसका मुल्याकन कर ये समझा जा सकता है कि क्या किसी तरह की दवाओं ने श्रीदेवी को मौत के मुंह में धकेल दिया. जाहिर है हर कलाकार चकाचौंध की दुनिया में खुद को सबसे ऊपर बनाए रखने के लिए कई तरह के प्रयोग और संयमित जीवन जीने की कोशिश करते है. जबसे फेसबुक,ट्विटर और इंस्टाग्राम जैसी चीजें आई है तबसे सबके अंदर एक खास तरह की चाह पैदा हुई है और वो है खुद को सबसे अच्छा दिखा कर चर्चा के केंद्र में आने के लिए.
मौत को दावत देने का खेल भी यहीं से शुरु होता है. आम तौर पर नागरिक तो रोजमर्रा की जिंदगी में फंसा रह जाता है लेकिन जो कलाकार है वो इसी चकाचौंध में रहते है और खुद को फीट बनाए रखने के लिए योगा और एक्सरसाइज करते है. लेकिन कई कलाकार या ज्यादातार कलाकार कई तरह की दवाइयों का सहारा लेते है. बढ़ती उम्र के साथ खुद को सुंदर बनाए रखने की चुनौती तो हर किसी के सामने होती है और बढती उम्र आपके अंदर कमजोरियां पैदा करता है औऱ आपको दवाओं की तरफ रुझान करने के लिए मजबुर करता है. श्रीदेवी भी 54 साल की हो चुकी थी लेकिन वो देखने में आज भी बिल्कुल चांदनी की तरह थी ऐसे में जाहिर है वो भी कई दवाओ और बोटेक्स जैसी चीजों का सहारा लेती होंगी ! बढ़ती उम्र के साथ वजन भी बढता है ऐसे में वजन घटाने के लिए कई लोग एक्सरसाइज या योग का सहारा लेते हैं तो वहीं कुछ लोग वजन घटाने के लिए दवाइयों का इस्तेमाल करते हैं। डॉक्टरों का कहना है कि इन दवाइयों में सिबट्रामिन होता है, जो हमारे शरीर के लिए बहुत हानिकारक होता है। वजन घटने के लिए इस्तेमाल की गई दवाइयों से हमारे स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ता है। ऐसी दवाइयों के इस्तेमाल का सबसे पहला साइड इफेक्ट हमारे पेट में होता है। इन दवाइयों के कारण कब्ज, एसिडिटी और दस्त जैसी बीमारियां हो सकती हैं। इन दवाइयों के खाने से शरीर में विटामिन की कमी हो जाती है, जिसके कारण कई बार मल्टीविटामिन गोलियों को खाने की जरूरत पड़ती है। इन गोलियों के अधिकांश तत्व विटामिन को अवशोषित करते हैं , जिससे शरीर की क्षमता कम होती है। वजन घटाने वाली दवाएं खाने से दिल का दौरा पड़ने का खतरा बना रहता है। इन दवाइयों के खाने से शारीरिक असहजता हो जाती है. वजन कम करने वाली गोलियों में सिबट्रामिन नाम का एक तत्व पाया जाता है, जो सिम्पेथेटिक नर्वस सिस्टम को ट्रिगर करता है। इस कारण से भूख का लगना कम हो जाता है। इसके साथ शरीर को कई ओर भी साइड इफेक्ट्स का सामना करना पड़ता है। इनकी वजह से हाइपरएक्टीविटी, हॉट फ्लैश और बल्डप्रेशर जैसी चीजों का शिकार हो जाते है. ऐसे में डॉक्टरों का कहना है कि वजन घटाने के लिए दवाइयों का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए। अगर आप अपना वजन घटाना चाहते हैं तो एक्सरसाइज या योग का सहारा ले सकते हैं। एक्सरसाइज करने से आपके शरीर का वजन भी घट जाएगा और कोई साइड एफेक्ट भी नहीं होगा।  लेकिन श्री देवी के मामले में भी अनुमान यही लगाया जा रहा है ऐसे में क्या सच में श्रीदेवी को दवाओं ने मौत की नींद सुला दी ? इसका जवाब तो श्रीदेवी और बॉनी कपूर ही दे सकते है. श्री देवी तो हमारे बीच रही नहीं औऱ बॉनी कपूर से कोई ये सवाल पूछने की हिम्मत अभी जुटा नहीं पाएगा. तो सच के लिए हम सबको इंतजार करना होगा.  

Saturday, February 24, 2018

कैसी थी श्री देवी की जिंदगी ?






सुनो ये किस्सा पुराना तो है लेकिन झूठा नहीं है...
लोग मिटा करते है, हस्तियां नहीं !
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श्रीदेवी एक ऐसी अदकारा थी जिनको हर वर्ग स्वीकार करता था....पढ़िए कुछ रोचक किस्से !
श्रीदेवी का जन्म 13 अगस्त 1963 को शिवाकाशी, तमिलनाडु में हुआ था। जन्म के समय उनका नाम श्रीअम्मा यंगेर अय्यपन था। श्रीदेवी की मातृभाषा तमिल है।

 श्रीदेवी के पिता एक वकील थे और मां गृहिणी थी। इनकी एक बहन और 2 सौतेले भाई भी थे।
 उन्होंने 1967 में थिरुमुघम की फिल्म 'थुनाईवन' से एक्टिंग करियर की शुरुआत की थी, जब वे केवल 4 वर्ष की थीं। बॉलीवुड में उन्होंने 1975 में आई हिट फिल्म 'जूली' में बाल कलाकार के रूप में शुरुआत की थी।
 1979 में हिन्दी फिल्मों में मुख्य अभिनेत्री के रूप में वे फिल्म 'सोलवां सावन' में आईं लेकिन उन्हें पहचान 1983 में आई फिल्म 'हिम्मतवाला' से मिली।
 श्रीदेवी ने अपने करियर में हिन्दी, तमिल, तेलुगु, मलयालम और कन्नड़ फिल्मों में काम किया है। 13 वर्षीय श्रीदेवी ने तमिल फिल्म 'मोन्दरु मूडीचु' में रजनीकांत की सौतेली मां का अभिनय किया था।
 श्रीदेवी ने जब बॉलीवुड में शुरुआत की, तब वे हिन्दी में बात करने में सहज नहीं थीं इसलिए उनकी आवाज ज्यादातर नाज द्वारा डब गई थी। इसके अलावा फिल्म 'आखिरी रास्ता' को रेखा ने डब किया था। श्रीदेवी ने पहली बार फिल्म 'चांदनी' में अपने संवाद के लिए डब किया।
 कहा जाता है कि मिथुन चक्रवर्ती और श्रीदेवी ने गुपचुप शादी कर ली थी लेकिन कुछ समय बाद ही दोनों अलग हो गए। उनकी शादी का प्रमाण-पत्र मीडियावालों के हाथ लगा था।

 1996 में श्रीदेवी ने अनिल कपूर और संजय कपूर के बड़े भाई फिल्म निर्माता बोनी कपूर से शादी कर ली और वे अर्जुन कपूर की सौतेली मां थी।
 श्रीदेवी की 2 बेटियां हैं जिनके नाम जाह्नवी और खुशी हैं। यही नाम उनके पति बोनी कपूर की फिल्म जुदाई (1997) और हमारा दिल आपके पास है (2000) की नायिकाओं के भी थे। श्रीदेवी हमेशा अपनी बेटी जाह्नवी के साथ बालकनी में खड़ी होती थीं, जब बोनी कपूर काम पर जाते थे।


श्रीदेवी ने बचपन में एक बच्ची के रूप में तेलुगु सुपरस्टार एनटी रामाराव के साथ काम किया और कुछ साल बाद उनकी हीरोइन बनी। बाद में एक फिल्म में उनके बेटे बलराज राव के साथ भी उन्होंने काम किया।

 श्रीदेवी ने फिल्म 'रूप की रानी चोरों का राजा' के गीत 'दुश्मन दिल का वो है' के लिए 25 किलो से अधिक वजन की स्वर्ण पोशाक पहनी थी जिसकी शूटिंग 15 दिनों तक चली थी।

 श्रीदेवी को पेंटिग में बहुत रूचि है। मार्च 2010 में उनके चित्रों को एक अंतरराष्ट्रीय कला नीलामी हाउस द्वारा बेचा गया और इससे मिले पैसे को दान किया गया। श्रीदेवी की इस कला के दीवानों में सलमान खान और मनीष मल्होत्रा शामिल हैं जिनके घर की दीवारों पर श्रीदेवी के बनाए चित्र लगे हुए हैं।

 श्रीदेवी को बॉलीवुड में सर्वश्रेष्ठ डांसर्स में से एक माना जाता था। कहा जाता है कि उनके गाने और डांस की लोकप्रियता की वजह से ही लोग उनकी फिल्मों के बारे में जानते थे। श्रीदेवी को डांसर्स में शम्मी कपूर और माइकल जैक्सन बहुत पसंद थे।
 श्रीदेवी बॉलीवुड की सबसे ज्यादा कमाई वाली अभिनेत्रियों में से एक थी। वे एकमात्र ऐसी अभिनेत्री थीं, जो 90 के दशक में लगभग एक करोड़ रुपये प्रति फिल्म लेती थी।

श्रीदेवी की 3 हिट फिल्में ऐसी थीं जिसमें उन्हें दूसरे विकल्प के रूप में चुना गया था। 'नगीना' को जयाप्रदा, 'चांदनी' को रेखा और 'सदमा' को डिम्पल कपाड़िया ने नकारा था।

 श्रीदेवी ने करीब 3 दशकों के टॉप हीरो के साथ परदे पर रोमांस किया था। 1970 के दशक के सितारे राजेश खन्ना, विनोद खन्ना, अमिताभ बच्चन, शत्रुघ्न सिन्हा, जीतेन्द्र, ऋषि कपूर, 80 के दशक के सितारे सनी देओल, संजय दत्त, अनिल कपूर, जैकी श्रॉफ और 90 के दशक के शाहरुख खान, अक्षय कुमार, सलमान खान की नायिका श्रीदेवी बनी हैं। 60 के दशक के धर्मेन्द्र की भी वे हीरोइन बनी थी।
 श्रीदेवी की पसंदीदा अमेरिकी अभिनेत्री मेरली स्ट्रीप और जूलिया रॉबर्ट्स थी. जब एमटीवी पहली बार मुंबई में लॉन्च हुआ था तब वीजे ने 'रूप की रानी चोरों का राजा' के सेट पर श्रीदेवी को 'जूलिया रॉबर्ट्स ऑफ बॉलीवुड' से नवाजा था।

 श्रीदेवी कम से कम मैकअप में विश्वास रखती थी। उनके पास मैकअप किट के नाम पर La Prairie प्लेटिनम क्रीम, कुछ आईलाइनर और एक लिप ग्लॉस रहता था।

 श्रीदेवी ने कभी अपने पसंदीदा सहकलाकार का नाम तो नहीं बताया लेकिन उन्होंने स्वीकार किया था कि अमिताभ बच्चन ही सबसे महान हैं, हालांकि उन्होंने कभी अमिताभ के साथ काम करने से इसलिए मना कर दिया था क्योंकि वे मानती थीं कि अमिताभ की फिल्मों में हीरोइन के लिए कुछ काम नहीं रहता।

 अमिताभ बच्चन ने फिल्म 'चालबाज' के लिए श्रीदेवी को सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का पुरस्कार दिया गया था। लगभग एक दशक बाद श्रीदेवी ने उन्हें फिल्म 'ब्लैक' के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का पुरस्कार दिया।
 श्रीदेवी को बिल्लियों से बेहद डर लगता है लेकिन सिने ब्लिट्ज के कवर के लिए उन्हें एक बिल्ली से साथ पोज देना पड़ा था।

 श्रीदेवी के लिए अधिकांश गाने आशा भोंसले और कविता कृष्णमूर्ति ने गाए हैं। लता मंगेशकर ने श्रीदेवी के सबसे लोकप्रिय सभी गाने गाए। श्रीदेवी ने खुद फिल्म 'चांदनी' का सुपरहिट टाइटल ट्रैक जॉली मुखर्जी के साथ गाया था।

श्रीदेवी पर फिल्माया 'जांबाज' का गीत 'हर किसी को नहीं मिलता' सुपरहिट रहा, जिसने 'सेक्सीनेस' शब्द के लिए एक नई परिभाषा बनाई और शिफॉन साड़ी इससे पहले कभी इतनी लोकप्रिय नहीं हुई।
 श्रीदेवी ने फिल्म 'हीर-रांझा' के लिए अपनी खुद की ड्रेसेस तैयार की थी, जो कि बिगोन एरा के चित्रों से प्रेरित थी।

 15 साल के एक लंबे अंतराल के बाद 2012 में श्रीदेवी ने फिल्म 'इंग्लिश-विंग्लिश' से वापसी की।

 निर्माता-निर्देशक यश चोपड़ा ने भारत की सभी शीर्ष अभिनेत्रियों के साथ काम किया है। उनका कहना रहा है कि जूही और माधुरी अच्छी हैं, लेकिन श्रीदेवी बेहतरीन हैं।
 श्रीदेवी ने जितेन्द्र, अनिल कपूर और ऋषि कपूर के साथ कई फिल्में की थी, लेकिन कमल हासन के साथ उन्होंने सबसे ज्यादा काम किया । लोग सोचते थे कि सेट पर इन्हें प्यार कैसे नहीं हुआ। 1983 में फिल्म 'सदमा' के बाद इस जोड़ी ने कभी साथ काम नहीं किया।
  श्रीदेवी सार्वजनिक स्थानों पर कम ही बात करती हैं लेकिन उनके बहुत करीबी जानते हैं कि वे मजेदार बातें करती हैं।

 श्रीदेवी की फिल्म 'लाड़ला' पहले दिव्या भारती कर रही थीं जिन्होंने फिल्म की लगभग आधी शूटिंग कर ली थी जिसके बाद उनकी मौत हो गई।

 फिल्म 'बाजीगर' में शिल्पा शेट्टी और काजोल की जगह श्रीदेवी को दोहरी भूमिका निभाने के लिए लिया जाना था।
 'शक्ति' में काम करते समय उन्हें जब पता चला कि वे गर्भवती हैं तो उन्होंने अपनी पसंदीदा हीरोइन काजोल से फिल्म को करने के लिए कहा, लेकिन काजोल व्यस्त थीं इसलिए फिल्म करिश्मा कपूर की झोली में आई।
 श्रीदेवी जब टॉप पर थी तो कई फिल्मों के ऑफर उन्हें मिलते थे। उन्होंने कामयाब, होशियार, खुदगर्ज, विजय, अभिमन्यु, अजूबा, लेकिन, बेटा, डर, आइना, बाजीगर, मोहरा, अंजाम, दिल तो पागल है, युगपुरुष, करोबार, यादें, शक्ति : द पावर, बागबान जैसी कई बड़ी फिल्में ठुकरा दी थी।

 2017 में प्रदर्शित हुई 'मॉम' श्रीदेवी की 300वीं फिल्म थी और उनके फिल्म करियर के 50वें वर्ष में रिलीज हुई थी।

नवाजुद्दीन सिद्दीकी ने फिल्म 'मॉम' में सिर्फ इसलिए काम किया, क्योंकि इसमें श्रीदेवी थी।
 आमिर खान की पसंदीदा अभिनेत्री श्रीदेवी हैं, लेकिन उन्हें कभी भी श्रीदेवी के साथ फिल्म करने का मौका नहीं मिला।
 1991 में लंदन में यश चोपड़ा की फिल्म 'लम्हें' की शूटिंग के दौरान उन्होंने अपने पिता को खो दिया। वे अंतिम संस्कार के लिए घर लौटी। इसके बाद 1997 में फिल्म 'जुदाई' की शूटिंग के दौरान उनकी मां की मृत्यु हुई।
 श्रीदेवी ने बेस्ट एक्ट्रेस के लिए 5 फिल्मफेयर पुरस्कार जीते । एक बाल कलाकार के रूप में उन्हें 'पूम्बट्टा' (1971) के लिए केरल राज्य फिल्म पुरस्कार मिला। 2013 में भारत सरकार ने उन्हें चौथे उच्चतम नागरिक सम्मान पद्मश्री से नवाजा।
दुबई में एक शादी समारोह में हिस्सा लेने गई श्रीदेवी वहीं से पूरे भारत को अलविदा कह गई, ये मनहूस तारीख थी 24 फरवरी 2018.....